Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

४८ सुखरूप नहीं है, वह तो विभाव है। ऐसी अपनी प्रतीत यथार्थ हो, उसकी महिमा आये तो उसमेंसे भिन्न होनेका स्वयं प्रयत्न करे। ऐसा विश्वास आना चाहिये कि यह लक्षण ज्ञानका ही है और ज्ञानलक्षण जो है वही मैं हूँ। और उसीमें शान्ति है, उसीमें सुख है। और बाहर इस रागमें सुख और शान्ति नहीं है। ऐसा यदि उसे विश्वास आये, प्रतीत आये तो वह भिन्न पडनेका प्रयत्न करता है।

यह स्व सो मैं, यह पर है। यह विभाव मेरा स्वभाव नहीं है। और उसे उसमें सुखका सुखका विश्वास आना चाहिये, उसे अपने स्वभावका विश्वास आना चाहिये तो भिन्न पडे।

मुमुक्षुः- विश्वासमें समझसे विश्वास आये ऐसे?

समाधानः- समझपूर्वक ही आये न कि यह ज्ञान जो है वही सुखका कारण है, मेरा स्वभाव हो वही सुखरूप हो। ये राग कोई सुखरूप नहीं है। उसका वेदन भी आकुलतारूप होता है। और ज्ञानका विचार करे तो उसका वेदन आकुलतारूहप नहीं है। (राग) आकुलतारूप है। ऐसे पहले तो विचारसे नक्की करे। शुरूआतमें तो उसे अनुभव या वेदन होता नहीं। इसलिये विचारसे ही उसे नक्की करनेका रहता है।

लक्षण पहचानकर विचार करनेका, विचारसे नक्की करनेका रहता है। ... वह लक्षण पूरा अखण्ड द्रव्य है। वह लक्षण मात्र पर्याय तक सीमित नहीं, परन्तु पूरा द्रव्य स्वतःसिद्ध अखण्ड तत्त्व हूँ। ऐसे उसे निर्णय करनेका अंतरमें रहता है। जो दिखता है वह मात्र पर्याय दिखती है, उसके ख्यालमें आती है। परन्तु उस परसे पूरे द्रव्य पर दृष्टि करनी है।

मुमुक्षुः- लक्षणको भिन्न करनेमें ही तकलीफ पडती है। लक्षणको भिन्न करनेमें ही दिक्कत होती है। राग और ज्ञान, ये दोनों..

समाधानः- दोनों एकमेक दिखते हैं।

मुमुक्षुः- जानपना वह ज्ञान। ऐसे विचारमें तो ले सकते हैं। परन्तु उससे आगे कुछ भावभासन जैसा हो, ऐसा कुछ नहीं बनता।

समाधानः- जानपना वह ज्ञान। लेकिन जानपना मात्र नहीं, जो जाणकस्वभाव ही है, जो जाणकस्वभाव है वह मैं हूँ। ऐसे स्वयं अंतरमें गहराईमें दृष्टि करे तो जाणकस्वभाव है वह मैं हूँ। ये जडस्वभाव कुछ जानता नहीं। जाननेवाला स्वभाव है वह मैं हूँ। स्वभाव पर जाना रहता है। मात्र जानपना नहीं। जाननेवाला है, उस पर दृष्टि करनी है।

मुमुक्षुः- ऐसा विचार करनेपर राग छूटकर परज्ञेयसे भिन्न...

समाधानः- सहज ही भिन्न पड जाता है। ज्ञायक, जाननेवाला ज्ञायक ही ज्ञानरूप परिणमता है। अपने स्वभावरूप, ज्ञायक ही ज्ञानस्वभावरूप परिणमित हुआ है। ऐसा उसे लक्ष्यमें आये, ऐसी प्रतीत हो, ज्ञानमें लक्षणसे बराबर पहचाने तो रागसे और ज्ञेयोंसे