Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

१७०

मुमुक्षुः- माताजी! पूज्य गुरुदेव कहते थे, अपनी शुद्ध पर्याय भी परद्रव्य है, हेय है, तो अब दशा तो प्रगट हुयी नहीं है और उसके परद्रव्य और हेय कैसे स्वीकार करे?

समाधानः- पर्याय परद्रव्य तो अपेक्षासे (कहा है)। परद्रव्य है और आत्माकी पर्याय है। उसका एक अंश है, इसलिये परद्रव्य कहनेमें आता है। वास्तवमें परद्रव्य है ऐसा (नहीं है)। दो द्रव्य भिन्न हैं, छः द्रव्य जैसे भिन्न-भिन्न हैं, ऐसे पर्याय उस तरह भिन्न नहीं है। वह तो द्रव्यके आश्रयसे होती है। शुद्धात्माकी पर्याय है। परन्तु शुद्धात्मा त्रिकाल है, वह अंश है। इसलिये परद्रव्य कहनेमें आता है। उस पर दृष्टि करनेसे भेद होता है। ऐसा भेद विकल्प नहीं करना और अभेद पर दृष्टि करना, ऐसा कहते हैं। उसमें कोई कर्मकी अपेक्षा, अपूर्ण पर्याय, पूर्ण पर्याय ऐसी अपेक्षा आती है। आत्मा तो अनादिअनन्त है। इसलिये परद्रव्य कहनेमें आता है। वास्तविकमें जैसे छः द्रव्य है, वैसा परद्रव्य नहीं है।

मुमुक्षुः- रागकी पर्यायको तो परद्रव्य कहेंगे।

समाधानः- परके निमित्तसे होती है इसलिये परद्रव्य। परन्तु पुरुषार्थकी मन्दतासे होती है, इसलिये विभावसे होती है, अपने पुरुषार्थकी मन्दतासे होती है। दृष्टि पलट दे तो छूट जाती है। कर्मके निमित्तसे होती है इसलिये उसको परद्रव्य कहनेमें आता है। उसमें तो अपूर्ण, पूर्ण पर्याय कर्मकी अपेक्षा आती है, अपूर्ण, पूर्ण, कर्मका अभाव हुआ इसलिये उसको परद्रव्य कहनेमें आता है। भेद-भेद विकल्प करनेसे विकल्प मिश्रित होता है इसलिये उसको परद्रव्य कहनेमें आता है। वास्तविक वह शुद्धात्माके आश्रयसे होती है और क्षणिक है। अपेक्षा समझनी चाहिये।

मुमुक्षुः- माताजी! वर्तमान ज्ञान पर्याय है। लक्षण द्वारा लक्ष्य आत्माकी प्रसिद्धि करना। वर्तमानमें जो मतिज्ञानकी पर्याय है, उससे लक्ष्य आत्माकी प्रसिद्धि हो जायगी?

समाधानः- वर्तमान ज्ञानकी पर्याय है, उस लक्षणसे लक्ष्य पहचानना। द्रव्य पर दृष्टि करके द्रव्यमें-से शुद्ध पर्याय प्रगट होती है। परन्तु मतिज्ञान लक्षण है, लक्ष्यको पहचानना। लक्षणसे लक्ष्य चैतन्यद्रव्यको ग्रहण करना। ऐसा कहनेमें आता है।

मतिज्ञान खण्ड है, अधूरा ज्ञानसे पूरा ज्ञान होता है, ऐसा नहीं। द्रव्यके आश्रयसे पूरा ज्ञान होता है। पूरी पर्याय, शुद्ध पर्याय द्रव्यके आश्रयसे शुद्ध पर्याय होती है। ऐसे मतिज्ञान तो बीचमें आता है। मतिज्ञानके लक्षणसे आत्माको पहचानना।

मुमुक्षुः- कल जो टेपमें आता है, गुरुदेव कह रहे थे कि खरेखर तो परद्रव्यको जानता ही नहीं है।

समाधानः- परद्रव्यको जानता नहीं है अर्थात अपना ज्ञानस्वभावको (जानता है)।