Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1728 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-६)

१४८ आती है।

समाधानः- वाणी बरसाकर सबको जागृत किया। इसलिये गुरुदेवका उपकारका बदला कैसे चूकाये, ऐसी सबको भावना होती है। उनका प्रभावना योग ही वर्तता है।

मुमुक्षुः- एकदम सच्ची बात है। अक्षरशः सच्ची बात है। उसमें भी आपकी पवित्रता, आपकी निर्मलता, आपकी निस्पृहता। निस्पृहता जबरजस्त काम कर रही है। बहिनश्रीको कहाँ किसीकी पडी है। गुरुदेव कहते थे न। स्वयं कहते थे, आपको क्या है? आप तो बैठे रहो। लोगोंको जो करना है करने दो। बराबर वही स्थिति आ गयी है। आनन्द हुआ। आप दीर्घायु हो और स्वास्थ्य कुशल रहो।

समाधानः- गुरुदेवकी वैशाख शुक्ला दूज थी न, उस वक्त यहाँ सब सजावट की थी। यहाँ स्वाध्याय मन्दिरमें चित्र एवं चरण आदि लगाया था। जीवन दर्शन किया था। वहाँ स्वाध्याय मन्दिरमें गयी थी। तब मुझे ऐसे ही विचार आते थे कि यह सब हुआ, लेकिन गुरुदेव यहाँ पधारे तो (कितना अच्छा होता)। ऐसे ही विचार रातको भी आते रहे। गुरुदेव पधारो, पधारो।

प्रातःकालमें स्वप्न आया कि गुरुदेव मानों देवलोकमें-से पधारते हैं, देवके रूपमें। रत्नके आभूषण, हार, मुगट इत्यादि। गुरुदेवने कहा, बहिन! ऐसा कुछ नहीं रखना, मैं तो यही हूँ। ऐसा तीन बार (हाथ करके बोले)। मैंने कहा, मैं तो कदाचित मानूँ, ये सब कैसे माने? गुरुदेव कुछ बोले नहीं। लेकिन उस दिन सबको ऐसा ही हो गया, मानों उल्लास-उल्लास हो गया।

मुमुक्षुः- गुरुदेव यहाँ थे उस वक्त भी अपनी इतनी चिंता करते थे, तो वहाँ जानेके बाद तो अधिक समृद्धिमें गये हैं, साधु-संतोंके बीच (रहते हैं)। इसलिये कुछ तो करते होेंगे न। उनको भी विकल्प तो आता होगा। नहीं तो भगवानको पूछ ले कि वहाँ हो रहा है।

समाधानः- गुरुदेवका सब प्रभाव है। मुमुक्षुः- बहुत सुन्दर। पूरे शासनके भाग्यके योगसे पूरे भारतवर्षमें... समाधानः- अंतरमें रुचि रखनी। वहाँ व्यापार-व्यवसाय हो तो भी शास्त्र स्वाध्याय करना, कुछ विचार करना कि आत्मा भिन्न है। यह मनुष्य जीवन ऐसे ही प्रवृत्तिमें चला जाता है।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!