Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 390 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-२)

३९०

मुमुक्षुः- अभेद।

समाधानः- अभेदको पहचान लेता है। प्रकाश नहीं, यह तेज दिखाई देता है, वह प्रकाश नहीं, उस प्रकारका प्रकाश नहीं। बहुत कहते हैं न? अन्दर ध्यान किया तो प्रकाश हो गया। उस प्रकारका प्रकाश नहीं है, वह प्रकाश नहीं है। यह प्रकाशगुण प्रकाशत्व शक्ति अन्दर है। वह प्रकाश अलग, चैतन्यका प्रकाश लेना। अरूपी प्रकाश है, यह रूपी प्रकाश नहीं है। स्वानुभूतिमें चैतन्यकी अनुभूति है, उसमें प्रकाश पर लक्ष्य नहीं है। प्रकाश यानी ज्ञान स्वयं प्रकाशस्वरूप ही है। एक प्रकाशत्व शक्ति आत्मामें है। अन्दर किसीको कल्पना हो जाती है कि अन्दरसे प्रकाश हो गया। वह नहीं। अन्दर गया इसलिये कुछ दिखा, कुछ प्रकाश हो गया, उजाला हो गया, वह सब भ्रमणा है, वह नहीं। यह तो चैतन्य स्वयं ज्ञानस्वरूप आत्मा ज्ञायक है, उसमें स्थिर हो गया, उसकी स्वानुभूति (हुयी)। वह चैतन्यज्योति चैतन्य प्रकाशस्वरूप चैतन्य ही है। बाहरका प्रकाश नहीं लेना।

.. प्रकाश प्रगट होता है, ऐसा गुरुदेव नहीं कहते थे। ज्ञानका प्रकाश। प्रकाश प्रगट होता है, ऐसा गुरुदेव नहीं कहते थे। वह तो वेदन, स्वानुभूतिका वेदन है। आनन्दगुण प्रगट होता है, प्रकाश प्रगट होता है ऐसा गुरुदेव नहीं कहते हैं।

मुमुक्षुः- १२वीं शक्ति है न? स्वसंवेदनमयी..

समाधानः- स्वसंवेनदमयी शक्ति। स्वसंवेदन-स्वानुभूतिके वेदनमय प्रकाश। स्वसंवेदन अर्थात स्वानुभूति, स्वयंका वेदन हो वह प्रकाश। यह मात्र प्रकाश बोलते हैं। अकेला प्रकाश नहीं। स्वसंवेदनरूप प्रकाश वह अलग प्रकाश है। स्वयं स्वयंको प्रकाशता है। संवेदनरूप प्रकाश। अपनी स्वानुभूति होती है, स्वयं चैतन्य है ऐसे ही अनन्त गुण हैं। वह सब चैतन्यस्वरूप ही है। उसे जो स्वानुभूति होती है, वह स्वानुभूतिका प्रकाश है। एक प्रकाशगुण प्रगट होता है, ऐसा नहीं है।

स्वसंवेदनमयी प्रकाश-अपने वेदनका प्रकाश है। दूसरा प्रकाश नहीं, अन्दर वेदन होता है। अन्दर आनन्दगुण आदि गुण (हैं)। आत्मा अपूर्व अनुपम है, उसका जो वेदन होता है, जो स्वसंवेदन होता है, उसका प्रकाश है। स्वयं अपनेको प्रकाशित करता है, स्वयं अपना वेदन कर रहा है। स्वयं अपने प्रकाशरूप परिणमता है, स्वयं अपनेको जान रहा है, दूसरे प्रकारसे कहें तो। वह प्रकाश यानी बाहरका प्रकाश नहीं। अपने वेदनका प्रकाश है।

मुमुक्षुः- .. अकेले ज्ञायकका अवलम्बन लेनेके लिये। अब जब उसने अवलम्बन लिया तब अवलम्बन अकेले ज्ञायकका लिया और ज्ञानमें तो उसे ज्ञायक और परिणाम दोनों आये न?