Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Jain Shastrona Arth Karavani Paddhati.

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समाधानःजिनमतमां तो एवी परिपाटी छे के पहेलां
सम्यक्त्व होय पछी व्रत होय; हवे सम्यक्त्व तो स्व-परनुं
श्रद्धान थतां थाय छे तथा ते श्रद्धान द्रव्यानुयोगनो अभ्यास
करतां थाय छे; माटे पहेलां द्रव्यानुयोग अनुसार श्रद्धान करी
सम्यग्द्रष्टि थाय अने त्यारपछी चरणानुयोग अनुसार व्रतादिक
धारण करी व्रती थाय. ए प्रमाणे मुख्यपणे तो नीचली दशामां
ज द्रव्यानुयोग कार्यकारी छे, तथा गौणपणे जेने मोक्षमार्गनी
प्राप्ति थती न जणाय तेने, पहेलां कोई व्रतादिकनो उपदेश
आपवामां आवे छे. माटे उच्च दशावाळाओने अध्यात्म-
उपदेश करवा योग्य छे एम जाणी नीचली दशावाळाओए
पराङ्मुख थवुं योग्य नथी.
(श्री मोक्षमार्गप्रकाशक पृ. २९५)
जैन शास्त्रोना अर्थ करवानी पद्धति
जिनमार्गमां कोई ठेकाणे तो निश्चयनयनी मुख्यता सहित
व्याख्यान छे तेनो तो ‘‘सत्यार्थ एम ज छे’’ एम जाणवुं; तथा
कोई ठेकाणे व्यवहारनयनी मुख्यता सहित व्याख्यान छे तेने
‘‘एम नथी पण निमित्तादिनी अपेक्षाए उपचार कर्यो छे’’
एम जाणवुं; अने ए प्रमाणे जाणवानुं नाम ज बन्ने नयोनुं
ग्रहण छे. पण बन्ने नयोनां व्याख्यानने समान सत्यार्थ जाणी
‘‘आ प्रमाणे पण छे तथा आ प्रमाणे पण छे’’ एवा भ्रमरूप
प्रवर्तवाथी तो बन्ने नयो ग्रहण करवा कह्या नथी.
(श्री मोक्षमार्गप्रकाशक पृ. २५६)
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