श्रद्धान थतां थाय छे तथा ते श्रद्धान द्रव्यानुयोगनो अभ्यास
करतां थाय छे; माटे पहेलां द्रव्यानुयोग अनुसार श्रद्धान करी
सम्यग्द्रष्टि थाय अने त्यारपछी चरणानुयोग अनुसार व्रतादिक
धारण करी व्रती थाय. ए प्रमाणे मुख्यपणे तो नीचली दशामां
ज द्रव्यानुयोग कार्यकारी छे, तथा गौणपणे जेने मोक्षमार्गनी
प्राप्ति थती न जणाय तेने, पहेलां कोई व्रतादिकनो उपदेश
आपवामां आवे छे. माटे उच्च दशावाळाओने अध्यात्म-
उपदेश करवा योग्य छे एम जाणी नीचली दशावाळाओए
पराङ्मुख थवुं योग्य नथी.
कोई ठेकाणे व्यवहारनयनी मुख्यता सहित व्याख्यान छे तेने
‘‘एम नथी पण निमित्तादिनी अपेक्षाए उपचार कर्यो छे’’
एम जाणवुं; अने ए प्रमाणे जाणवानुं नाम ज बन्ने नयोनुं
ग्रहण छे. पण बन्ने नयोनां व्याख्यानने समान सत्यार्थ जाणी
‘‘आ प्रमाणे पण छे तथा आ प्रमाणे पण छे’’ एवा भ्रमरूप
प्रवर्तवाथी तो बन्ने नयो ग्रहण करवा कह्या नथी.