चैतन्यमंदिरे नित्य विचरता,
अनुपम आनंदे जिन रमता;
गुणोनां निधान.....प्रभुजीने० ४.
त्रिभुवन-तारणहार पधार्या,
सुरनरमुनिना नाथ बिराज्या;
दिव्यामृत आ विश्वे वरस्यां;
भारतना भगवान.....प्रभुजीने० ५.
विचर्या नंत तीर्थंकरदेवा,
कण कण पावन थया शिखरना;
मंगळकारी महान.....प्रभुजीने० ६.
चारणॠद्धिधारी पधार्या,
गणधरमुनिनां वृंद पधार्या;
ध्यान कर्यां आ धाम.....प्रभुजीने० ७.
अनंत संते स्वरूप साध्या,
क्षपकश्रेणीए अनंत चडिया;
प्रगट्यां केवळज्ञान.....प्रभुजीने०
— पाम्या सिद्धि महान...प्रभुजीने० ८.
इन्द्र-नृपतिवर-वृंदो ऊतरे,
प्रभुजी-चरणे शीश झुकावे;
श्री गिरिराज महान.....प्रभुजीने० ९.
वनवृक्षोनी घटाथी सोहे,
मनहर चैतन्यधाम बतावे;
सर्व गिरि शिरताज.....प्रभुजीने० १०.
अनंत तीर्थंकर स्मरणे आवे,
अनंत मुनिनां ध्यानो स्फुरे;
पावन संमेदधाम.....प्रभुजीने० ११.
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