Gurustutiaadisangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गिरिराज कहेः कुंदस्वामी पधार्या,
परम वैरागी मुनि अहीं बहु विचर्या;
अमारे वन-पर्वत मांही बिराज्या रे,
अम भूमिमां ऊंडां आत्मध्यान साध्यां रे.....आजे० ६.
कुंदप्रभुए ऊंडां आत्मध्यान साध्यां,
निशदिन आतमदेव आराध्या;
सातिशय श्रुतधारी, जिनमुद्राधारी रे,
स्वानुभूतिमां झूले मुनि वीतरागी रे.....आजे० ७.
कुंददेवने लागी प्रभुदर्शननी लगनी,
अंतर मांही सीमंधर-रढ जागी;
(अंतर मांही जपे जिनवरस्वामी;)
केम देखुं साक्षात सीमंधरदेवा रे,
विदेहक्षेत्रे बिराजे जिनवरराया रे.....आजे० ८.
मुनिध्यान फळियां ने प्रभुजी उच्चरिया,
विदेहीनाथनां कृपामृत वरस्यां;
सीमंधरनाथे आशीर्वाद आप्या रे,
समोसर्णे सभाजनो आश्चर्य पाम्या रे.....आजे० ९.
जंबू-भरतमांथी ऊपड्या विदेहे,
पंचम काळे पहोंच्या प्रभुजीनी पासे;
साक्षात् प्रभुजीनां दर्शन लाध्यां रे,
ऊंची ऊंची भावनानां फळ रूडां पाम्या रे.....आजे० १०.
भारतना मुनीश्वर विदेहयात्रा पाम्या,
सीमंधरनाथने नजरे निहाळ्या;
ॠद्धिधारी आश्चर्यकारी आत्मविकासी रे,
कहानगुरुए कुंदमहिमा प्रकाशी रे.....आजे० ११.
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