Ishtopdesh-Gujarati (English transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 70 of 146
PDF/HTML Page 84 of 160

 

background image
70 ]
iShTopadesh
[ bhagavAnashrIkundakund-
एकं पूर्वापरपर्यायाऽनुस्यूतं अग्रमात्मग्राह्यं यस्य तदेकाग्रं तद्भावेन कस्य ? चेतसो मनसः
अयमर्थो यत्र क्वचिदात्मन्येव वा श्रुतज्ञानावष्टम्भात् आलम्बितेन मनसा इन्द्रियाणि निरुद्धय
स्वात्मानं च भावयित्वा तत्रैकाग्रतामासाद्य चिन्तां त्यक्त्वा स्वसंवेदनेनैवात्मानमनुभवेत्
उक्तं च
‘‘गहियं तं सुअणाणा पच्छा संवेयणेण भाविज्ज
जो ण हु सुयमवलंवइ सो मुज्झइ अप्पसब्भावो ।।’’
एक कहिए विवक्षित कोई एक आत्मा, अथवा कोई एक द्रव्य, अथवा पर्याय, वही है अग्र
कहिए प्रधानतासे आलम्बनभूत विषय जिसका ऐसे मनको कहेंगे ‘एकाग्र’
अथवा एक
कहिए पूर्वापर पर्यायोंमें अविच्छिन्नरूपसे प्रवर्तमान द्रव्य-आत्मा वही है, अग्र-आत्मग्राह्य
जिसका ऐसे मनको एकाग्र कहेंगे
सारांश यह है, कि जहाँ कहीं अथवा आत्मामें ही श्रुतज्ञानके सहारेसे भावनायुक्त
हुए मनके द्वारा इन्द्रियोंको रोक कर स्वात्माकी भावना कर उसीमें एकाग्रताको प्राप्त कर
चिन्ताको छोड़ कर स्वसंवेदनके ही द्वारा आत्माका अनुभव करे
जैसा कि कहा भी है
‘‘गहियं तं सुअणाणा’’
अर्थ‘‘उस (आत्मा)को श्रुतज्ञानके द्वारा जानकर पीछे संवेदन (स्वसंवेदन)में
अनुभव करे जो श्रुतज्ञानका आलम्बन नहीं लेता वह आत्मस्वभावके विषयमें गड़बड़ा जाता
ekAgrano bIjo artha
ek eTale pUrvApar paryAyomAn anusyUtarUpathI (avichchhinnarUpathI) pravartamAn agra
eTale AtmA jenote ekAgratenA bhAvathI eTale ekAgratAthI.
konA? chittanA(bhAv) mananA. teno A artha chhejyAn kahIn athavA AtmAmAn ja
shrutagnAnanI sahAyathI, mananA Alamban dvArA indriyone rokIne tathA potAnA AtmAne bhAvIne
temAn ekAgratA prApta karI, chintA chhoDI, svasamvedan dvArA ja AtmAno anubhav karavo.
‘अनगारधर्मामृततृतीय अध्याय’mAn kahyun chhe ke
‘tene (AtmAne) shrutagnAn dvArA grahaN karI (jANI) samvedan (svasamvedan) dvArA
anubhav karavo. je shrutagnAnanun avalamban leto nathI te AtmasvabhAvanA viShayamAn munjhAI
jAy chhe (gabharAI jAy chhe).
tathA ‘समाधिशतक’shlok 32mAn kahyun chhe ke