Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Lokana Anadinidhanapanani Pushti.

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अमूर्तिकसचेतन छे के मूर्तिकअचेतन छे? जो अमूर्तिकसचेतन छे तो तेमां मूर्तिकअचेतन
केवी रीते मळे? तथा जो मूर्तिकअचेतन छे तो तेमां अमूर्तिकसचेतन केवी रीते मळे? तथा
मूर्तिकअचेतन छे तो ब्रह्ममां मळे छे के नहि? जो मळे छे तो तेना मळवाथी ब्रह्म पण
मूर्तिकअचेतनवडे मिश्रित थयुं तथा जो नथी मळता तो अद्वैतता न रही! तुं कहीश के
‘‘ए सर्व अमूर्तिक छे ते चेतन बनी जाय छे.’’ तो आत्मा अने शरीरादिकनी एकता थई.
हवे तेने संसारी जीवो पण एकता ज माने छे तो तेमने अज्ञानी शा माटे कहे छे?
वळी लोकनो प्रलय थतां महेशनो प्रलय थाय छे के नहि? जो थाय छे तो ते एकसाथ
थाय छे के आगळ पाछळ थाय छे? जो एकसाथ थाय छे तो पोते ज नष्ट थतो महेश
लोकने नष्ट केवी रीते करी शके? तथा आगळ पाछळ थाय छे तो लोकने नष्ट करी ए महेश
पोते क्यां रह्यो? कारण के पोते पण सृष्टिमां ज हतो.
एम महेशने सृष्टिनो संहारकर्ता माने छे ते असंभव छे.
ए प्रमाणे वा अन्य अनेक प्रकारथी ब्रह्मा, विष्णु, महेशने सृष्टिने उपजाववावाळा,
रक्षा करवावाळा तथा संहार करवावाळा मानवा ते बनतुं ज नथी तेथी मिथ्या छे एम समजी
लोकने अनादिनिधन मानवो.
‘‘लोकना अनादिनिधानपणानी पुष्टि’’
आ लोकमां जे जीवादि पदार्थो छे ते जुदा जुदा अनादिनिधन छे. तेमनी अवस्थानी
पलटना थया करे छे ए अपेक्षाए तेमने ऊपजताविणसता कहीए छीए. स्वर्ग, नरक अने
द्वीपादिक छे ते अनादिथी ए ज प्रमाणे छे अने सदाकाळ एम ज रहेशे.
तुं कहीश केकोईना बनाव्या विना एवा आकारादिक केम संभवे? थाय तो
बनाववाथी ज थाय. पण एम नथी; कारण केअनादिथी ज जे छे त्यां तर्क शो? जेम तुं
परमब्रह्मनुं स्वरूप अनादिनिधन माने छे तेम ए स्वर्गादिक तथा जीवादिक पण अनादिनिधन
माने छे. तुं कहीश के
जीवादिक वा स्वर्गादिक केवी रीते थया? तो अमे पूछीए छीए के
परमब्रह्म केवी रीते थयो? तुं कहीश केएनी (लोकनी) रचना आवी कोणे करी? तो अमे
पूछीए छीए केपरमब्रह्मने आवो कोणे बनाव्यो? तुं कहीश के परमब्रह्म स्वयंसिद्ध छे. तो
अमे कहीए छीए केजीवादिक वा स्वर्गादिक पण स्वयंसिद्ध छे. तुं कहीश केतेनी अने
परमब्रह्मनी समानता केम संभवे? अमे कहीए छीए केएवी संभवतामां दूषण बताव. जेम
लोकने नवो उपजाववो, तेनो नाश करवो तेमां अमे अनेक दोष बताव्या, तेम लोकने
अनादिनिधन मानवामां शो दोष छे? ते तुं बताव!
तुं जे परमब्रह्म माने छे ते जुदो कोई नथी, परंतु संसारमां जीव छे ते ज
यथार्थज्ञानवडे मोक्षमार्ग साधनथी सर्वज्ञवीतराग थाय छे.
पांचमो अधिकारः अन्यमत निराकरण ][ १११