Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 123 of 350
PDF/HTML Page 151 of 378

 

background image
-
पाँचवाँ अधिकार ][ १३३
संसारीके स्कन्धरूप वह दुःख है। वह पाँच प्रकार का हैविज्ञान, वेदना, संज्ञा, संस्कार, रूप।
वहाँ रूपादिकका जानना सो विज्ञान है; सुख-दुःखका अनुभवन करना सो वेदना है;
सोतेका जागना सो संज्ञा है; पढ़ा था उसे याद करना सो संस्कार है; रूपका धारण सो
रूप
है। यहाँ विज्ञानादिकको दुःख कहा सो मिथ्या है; दुःख तो काम-क्रोधादिक हैं, ज्ञान
दुःख नहीं है। यह तो प्रत्यक्ष देखते हैं कि किसीके ज्ञान थोड़ा है और क्रोध-लोभादिक
बहुत हैं सो दुःखी है; किसीके ज्ञान बहुत है, काम-क्रोधादि अल्प हैं व नहीं हैं सो सुखी
है। इसलिये विज्ञानादिक दुःख नहीं हैं।
तथा आयतन बारह कहे हैंपाँच इन्द्रियाँ और उनके शब्दादिक पाँच विषय, एक
मन और एक धर्मायतन। सो यह आयतन किस अर्थ कहे हैं? सबको क्षणिक कहते हैं,
तो इनका क्या प्रयोजन है?
तथा जिससे रागादिकके गण उत्पन्न होते हैं ऐसा आत्मा और आत्मीय है नाम जिसका
सो समुदाय है। वहाँ अहंरूप आत्मा और ममरूप आत्मीय जानना, परन्तु क्षणिक माननेसे
इनको भी कहनेका कुछ प्रयोजन नहीं है।
तथा सर्व संस्कार क्षणिक हैं, ऐसी वासना सो मार्ग है। परन्तु बहुत काल स्थायी कितनी
ही वस्तुएँ प्रत्यक्ष देखी जाती हैं। तू कहेगाएक अवस्था नहीं रहती; सो यह हम भी मानते
हैं। सूक्ष्म पर्याय क्षणस्थायी है। तथा उसी वस्तुका नाश मानते हैं; परन्तु यह तो होता दिखाई
नहीं देता, हम कैसे मानें? तथा बाल-वृद्धादि अवस्थामें एक आत्माका अस्तित्व भासित होता
है; यदि एक नहीं है तो पूर्व-उत्तर कार्यका एक कर्ता कैसे मानते हैं? यदि तू कहेगा
संस्कारसे
है, तो संस्कार किसके हैं? जिसके हैं वह नित्य है या क्षणिक है? नित्य है तो सर्व क्षणिक
कैसे कहते हैं? क्षणिक है तो जिसका आधार ही क्षणिक है उस संस्कारकी परम्परा कैसे कहते
हैं? तथा सर्व क्षणिक हुआ तब आप भी क्षणिक हुआ। तू ऐसी वासनाको मार्ग कहता है,
१. दुःखं संसारिणः स्कन्धास्ते च पश्चप्रकीर्तिताः।
विज्ञानं वेदना संज्ञा संस्कारोरूपमेव च ।।३७।। वि० वि०
२. रूपं पंचेन्द्रियाण्यर्थाः पंचाविज्ञाप्तिरेव च।
तद्विज्ञानाश्रया रूपप्रसादाश्चक्षुरादयाः ।।७।।
वेदनानुभवः संज्ञा निमित्तोद्ग्रहणात्मिका।
संस्कारस्कन्धश्चतुर्भ्योन्ये संस्कारास्त इमे त्रय ।।१५।।
विज्ञानं प्रति विज्ञप्ति........। अ० को० (१)