चेष्टा करते हैं। यदि कुस्थानके ही निवासी हों तो उत्तमस्थानमें आते हैं; वहाँ किसके लानेसे
आते हैं? अपने आप आते हैं तो अपनी शक्ति होने पर कुस्थानमें किसलिये रहते हैं?
इसलिये इनका ठिकाना तो जहाँ उत्पन्न होते हैं वहाँ इस पृथ्वीके नीचे व ऊपर है सो मनोज्ञ
है। कुतूहलके लिये जो चाहें सो कहते हैं। यदि इनको पीड़ा होती हो तो रोते-रोते हँसने
कैसे लग जाते हैं?
व कोई प्रबल उसे मना करे तब रह जाता है व आप ही रह जाता हैः
जाता है, क्योंकि वैक्रियक शरीरका जलना आदि सम्भव नहीं है।
हैं। अल्प ज्ञान हो तो अन्य महत् ज्ञानीसे पूछ आकर जवाब देते हैं। अपनेको अल्प
ज्ञान हो व इच्छा न हो तो पूछने पर उसका उत्तर नहीं देते
उसका स्मरणमात्र रहता है, इसलिये वहाँ इच्छा द्वारा आप कुछ चेष्टा करें तो कहते हैं,
पूर्व जन्मकी बातें कहते हैं; कोई अन्य बात पूछे तो अवधिज्ञान तो थोड़ा है, बिना जाने
किस प्रकार कहें? जिसका उत्तर आप न दे सकें व इच्छा न हो, वहाँ मान
चरित्र दिखाते हैं। अन्य जीवके शरीरको रोगादियुक्त करते हैं।
उसके पुण्य-पापके अनुसार परिणमित कर सकते हैं। उसके पुण्यका उदय हो तो आप
रोगादिरूप परिणमित नहीं कर सकता, और पाप-उदय हो तो उसका इष्ट कार्य नहीं कर
सकता।