उसे मुनि कहा है। समवसरणसभामें मुनियोंकी संख्या कही, वहाँ सर्व ही शुद्ध भावलिंगी
मुनि नहीं थे; परन्तु मुनिलिंग धारण करनेसे सभीको मुनि कहा। इसीप्रकार अन्यत्र जानना।
मुनिधर्म ऊँचा है; सो ऊँचा धर्म छोड़कर नीचा धर्म अंगीकार किया वह अयोग्य है; परन्तु
वात्सल्य अंगकी प्रधानतासे विष्णुकुमारजीकी प्रशंसा की है। इस छलसे औरोंको ऊँचा धर्म
छोड़कर नीचा धर्म अंगीकार करना योग्य नहीं है।
दूर करने पर रति माननेका कारण होता है और उन्हें रति करना नहीं है, तब उल्टा उपसर्ग
होता है। इसीसे विवेकी उनके शीतादिकका उपचार नहीं करते। ग्वाला अविवेकी था,
करुणासे यह कार्य किया, इसलिये उसकी प्रशंसा की है, परन्तु छलसे औरोंको धर्मपद्धतिमें
जो विरुद्ध हो वह करना योग्य नहीं है।
रखनेमें अविनय होती है, यथावत् विधिसे ऐसी प्रतिमा नहीं होती, इसलिये इस कार्यमें दोष
है; परन्तु उसे ऐसा ज्ञान नहीं था, उसे तो धर्मानुरागसे ‘मैं और को नमन नहीं करूँगा’
ऐसी बुद्धि हुई; इसलिये उसकी प्रशंसा की है। परन्तु इस छलसे औरोंको ऐसे कार्य करना
योग्य नहीं है।
करनेसे तो निःकांक्षितगुणका अभाव होता है, निदानबन्ध नामक आर्तध्यान होता है, पापका
ही प्रयोजन अन्तरंगमें है, इसलिये पापका ही बन्ध होता है; परन्तु मोहित होकर बहुत
पापबन्धका कारण कुदेवादिका तो पूजनादि नहीं किया, इतना उसका गुण ग्रहण करके उसकी
प्रशंसा करते हैं। इस छलसे औरोंको लौकिक कार्योंके अर्थ धर्म-साधन करना युक्त नहीं है।
इसीप्रकार अन्यत्र जानना।