Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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६० ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
अथवा बाह्य सामग्रीसे सुख-दुःख मानते हैं सो ही भ्रम है। सुख-दुःख तो साता-असाताका
उदय होने पर मोहके निमित्तसे होते हैंऐसा प्रत्यक्ष देखनेमें आता है। लक्ष धनके धनीको
सहस्र धनका व्यय हुआ तब वह तो दुःखी है और शत धनके धनीको सहस्र धन हुआ तब
वह सुख मानता है। बाह्य सामग्री तो उसके इससे निन्यानवेगुनी है। अथवा लक्ष धनके धनीको
अधिक धनकी इच्छा है तो वह दुःखी है और शत धनके धनीको सन्तोष है तो वह सुखी
है। तथा समान वस्तु मिलने पर कोई सुख मानता है कोई दुःख मानता है। जैसे
किसीको
मोटे वस्त्रका मिलना दुःखकारी होता है, किसीको सुखकारी होता है। तथा शरीरमें क्षुधा आदि
पीड़ा व बाह्य इष्टका वियोग, अनिष्टका संयोग होने पर किसीको बहुत दुःख होता है, किसीको
थोड़ा होता है, किसीको नहीं होता। इसलिये सामग्रीके आधीन सुख-दुःख नहीं हैं, साता-
असाताका उदय होने पर मोह-परिणमनके निमित्तसे ही सुख-दुःख मानते हैं।
यहाँ प्रश्न है किबाह्य सामग्रीका तो तुम कहते हो वैसा ही है; परन्तु शरीरमें
तो पीड़ा होने पर दुःखी होता ही है और पीड़ा न होने पर सुखी होता हैयह तो
शरीर-अवस्थाहीके आधीन सुख-दुःख भासित होते हैं?
समाधानःआत्माका तो ज्ञान इन्द्रियाधीन है और इन्द्रियाँ शरीरका अङ्ग हैं, इसलिये
इसमें जो अवस्था हो उसे जाननेरूप ज्ञान परिणमित होता है; उसके साथ ही मोहभाव हो,
उससे शरीरकी अवस्था द्वारा सुख-दुःख विशेष जाना जाता है। तथा पुत्र धनादिकसे अधिक
मोह हो तो अपने शरीरका कष्ट सहे उसका थोड़ा दुःख माने, और उनको दुःख होने पर
अथवा उनका संयोग मिटने पर बहुत दुःख माने; और मुनि हैं वे शरीरको पीड़ा होने
पर भी कुछ दुःख नहीं मानते; इसलिये सुख-दुःखका मानना तो मोहहीके आधीन है। मोहके
और वेदनीयके निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है, इसलिये साता-असाता के उदयसे सुख-दुःखका
होना भासित होता है। तथा मुख्यतः कितनी ही सामग्री साताके उदयसे होती है, कितनी
ही असाताके उदयसे होती है; इसलिये सामग्रियोंसे सुख-दुःख भासित होते हैं। परन्तु निर्धार
करने पर मोह ही से सुख-दुःख का मानना होता है, औरोंके द्वारा सुख-दुःख होनेका नियम
नहीं है। केवलीके साता-असाताका उदय भी है और सुख-दुःखके कारण सामग्रीका संयोग
भी है; परन्तु मोहके अभावसे किंचित्मात्र भी सुख-दुःख नहीं होता। इसलिये सुख-दुःख
को मोहजनित ही मानना। इसलिये तू सामग्रीको दूर करनेका या होनेका उपाय करके दुःख
मिटाना चाहे और सुखी होना चाहे सो यह उपाय झूठा है।
तो सच्चा उपाय क्या है? सम्यग्दर्शनादिकसे भ्रम दूर हो तब सामग्रीसे सुख-दुःख भासित
नहीं होता, अपने परिणामहीसे भासित होता है। तथा यथार्थ विचारके अभ्यास द्वारा अपने