Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 10 Gatha: 4.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
जीव अधिकार
[ ९

चारित्रमपि निश्चयज्ञानदर्शनात्मककारणपरमात्मनि अविचलस्थितिरेव अस्य तु नियम- शब्दस्य निर्वाणकारणस्य विपरीतपरिहारार्थत्वेन सारमिति भणितं भवति

(आर्या)
इति विपरीतविमुक्तं रत्नत्रयमनुत्तमं प्रपद्याहम्
अपुनर्भवभामिन्यां समुद्भवमनंगशं यामि ।।१०।।
णियमं मोक्खउवाओ तस्स फलं हवदि परमणिव्वाणं
एदेसिं तिण्हं पि य पत्तेयपरूवणा होइ ।।।।
नियमो मोक्षोपायस्तस्य फलं भवति परमनिर्वाणम्
एतेषां त्रयाणामपि च प्रत्येकप्ररूपणा भवति ।।।।

परमात्मामां अविचळ स्थिति (निश्चळपणे लीन रहेवुं) ते ज चारित्र छे. आ ज्ञान- दर्शनचारित्रस्वरूप नियम निर्वाणनुं कारण छे. ते ‘नियम’ शब्दने विपरीतना परिहार अर्थे ‘सार’ शब्द जोडवामां आव्यो छे.

[हवे त्रीजी गाथानी टीका पूर्ण करतां श्लोक कहेवामां आवे छेः] [श्लोकार्थः] ए रीते हुं विपरीत विनाना (विकल्परहित) अनुत्तम रत्नत्रयनो आश्रय करीने मुक्तिरूपी स्त्रीथी उद्भवता अनंग (अशरीरी, अतीन्द्रिय, आत्मिक) सुखने प्राप्त करुं छुं. १०.

छे नियम मोक्षोपाय, तेनुं फळ परम निर्वाण छे;
वळी आ त्रणेनुं भेदपूर्वक भिन्न निरूपण होय छे. ४.

अन्वयार्थः[नियमः] (रत्नत्रयरूप) नियम [मोक्षोपायः] मोक्षनो उपाय छे; [तस्य

१. कारणना जेवुं ज कार्य थाय छे; तेथी स्वरूपमां स्थिरता करवानो अभ्यास ज खरेखर अनंत काळ सुधी स्वरूपमां स्थिर रही जवानो उपाय छे.

२. विपरीत=विरुद्ध. [व्यवहाररत्नत्रयरूप विकल्पोनेपराश्रित भावोनेबातल करीने मात्र निर्विकल्प ज्ञानदर्शनचारित्रनो जशुद्धरत्नत्रयनो जस्वीकार करवा अर्थे ‘नियम’ साथे ‘सार’ शब्द जोड्यो छे.]

३. अनुत्तम=जेनाथी बीजुं कांई उत्तम नथी एवुं; सर्वोत्तम; सर्वश्रेष्ठ.