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प्रातःकाळे दर्शन करे छे ते भव्य जीव, लक्ष्मीनुं क्रीडास्थान, पृथ्वीनुं
कुलभवन, यश अने हर्षनुं स्थान, सरस्वतीनुं क्रीडामंदिर, विजयलक्ष्मीनुं
विशाळ क्रीडास्थान, इन्द्रादि द्वारा पूज्य अने समस्त महान महान
उत्सवोनुं स्थान बने छे. १.
संसाररूपी अत्यंत मोटा मरुस्थल माटे विशाळ सघन छायावृक्ष! ज्ञानीजन
आपनो आश्रय ले छे. २.
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चांदनी अमृत वरसावे छे. मोक्षपदना सुखनी प्राप्ति माटे आवा आपना
दर्शन करीने हुं एम मानुं छुं के हुं, माताना गर्भरूपी अंधारिया कूवामांथी
आजे ज नीकळ्यो छुं, आजे ज मारा नेत्रो खूल्यां छे अने आजे ज मारो
जन्म सफळ थयो छे. ३.
मणिमय दीपकोनी पंक्ति जेमां सघन थई गई छे एवी आ समवशरणरूप
विभूति क्यां अने आपनी आ परम उदासीनता क्यां? तेथी हे
त्रिभुवननाथ! आपना जेवा सर्वज्ञानी, सर्वदर्शीओना लोकमां अतिशयताने
पामेल चारित्रनो महिमा तर्कनो विषय नथी. ४.
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खंडित करनार मोहमल्लने आपे क्षणवारमां जीती लीधो अने पोताना
ज्ञानरूपी दर्पणमां आप संपूर्ण लोकालोकने जाणो,
अर्थात् क्यांय संभवी शकती नथी. ५.
आत्मज्ञानी अने सदाचारी पात्रने अनेकवार दान आप्युं छे, कठोर तपोनुं
आचरण कर्युं छे, लांबा समय सुधी अनेक पूजाओ करी छे अने निर्मळ
गुणो सहित सर्व शीलव्रतोनी प्राप्ति करी लीधी छे. ६.
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कर्ण अने हृदयना आभूषण बनावे छे अर्थात् धारण करे छे ते ज बुद्धिनो
पार पाम्या छे, ते ज गुणरूपी रत्नोना आभूषणोथी शोभे छे अने ते
ज जीव निश्चयथी प्रशंसाने योग्य छे. ७.
युवतीओनी कटाक्षलीलानी शोभा धारण करनार एवा उन्नत चामर देवो
द्वारा जेमना उपर ढोळवामां आवे छे एवा श्री जिनेन्द्रदेव! आप सदा
जयवंत हो. ८.
प्रातिहार्योथी शोभता, देव अने मनुष्योनी सभारूपी कमलिनीने विकसित
करवा माटे सूर्यसमान तथा समस्त इन्द्र अने राजाओना मुगटोने पोताना
चरणोनुं आसन बनावनार जिनेन्द्रदेव आपणा सौनी रक्षा करो. ९.
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देवांगनाओना समूहथी शोभता, तत्काळ त्रणे लोकमां यात्राना उत्सवनी
ध्वनि करता वाजिंत्रोथी हर्षित थयेला देवोथी सुशोभित अने हस्तकमळोमां
लीलापूर्वक धारण करेली पुष्पोनी माळाओथी मनोहर देवांगनाओ द्वारा
सुन्दर देवोनुं आगमन जयवंत वर्तो. १०.
योग्य पदार्थोनी सीमास्वरूप आपना मुखचन्द्रना दर्शनथी परम आनंदने
प्राप्त मारा नेत्रो तत्काळ कृतार्थ कर्या छे तेथी विश्वमां मारा ज नेत्रो
सफळ छे. ११.
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कटाक्षपातने निष्फळ करनार आप ज एकमात्र वास्तवमां ते कामदेवना
विजेता छो. १२.
सघन फूलोथी विकसित थई गयुं अने अत्यारे आपना मुखचन्द्रना साक्षात्
दर्शन करवाथी अतिशय फळोथी व्याप्त थयुं छे अर्थात् आपना दर्शन
अत्यन्त पुण्यनुं कारण छे. १३.
नूतन जलधारा समान छे अने इन्द्ररूपी मोरना नृत्यने शरू करवामां आप
साक्षात् अग्रेसर बंधु छो, एवा जिनेन्द्र समूहरूप वादळाओनो समुदाय
जयवंत हो. १४.
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श्रीपादच्छाययापस्थितभवदवथुः संश्रितोऽस्मी व मुक्तिम्
समान छो. समस्त संसाररूपी कौमुदी माटे चन्द्र समान छो एवा श्री
जिनेन्द्रदेवना मंदिरनी त्रण प्रदक्षिणा लईने ज्यारे हुं भक्तिथी बन्ने हाथ
जोडुं छुं त्यारे मने एम लागे छे के आपना श्रीचरणनी छायाद्वारा
संसारनो बधो ताप दूर थई गयो छे अने में मुक्तिनी ज प्राप्ति करी
लीधी छे. १५.
मुख जुए छे ते लक्ष्मी, कीर्ति, कांति अने धैर्यनी प्राप्तिना कारण
स्वरूप कया कया शुभ मंगलो पामतो नथी? अर्थात् बधा मंगल प्राप्त
करे छे. १६.
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कुलाचलस्वरूप छे, अत्यंत गाढ फळवाळा धर्मरूपी वृक्षनी टोच उपर रहेला
पांदडाओना समूहनी अणीनी जेम जेना उपर ध्वज शोभे छे अने जे
लक्ष्मीनुं घर छे. १७.
प्रकाशमान छे, जेमना चरणकमळ देवेन्द्र अने नरेन्द्रोना समूहथी पूजवाने
योग्य छे तथा जेमणे कर्म (राग-द्वेषादि भाव) रूपी शत्रुओने जीती लीधा
छे एवा श्री जिनेन्द्रदेव जयवंत हो. १८.
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भुवनना मंगलोनुं घर छे. १९.
काव्यरचनानी शोभा आपना चारित्रथी आप ज वधारो छो, क्रीडारूपी
नंदनवनमां आप ज कोयल समान छो, मोक्षलक्ष्मीरूप मालतीना आप
भ्रमर छो, उत्तम पुरुषोनी कथारूप कमल सरोवरना आप हंस छो
अने जेम पोतानी शोभा वधारनार पुरुष माळाओथी शोभता
मुगट पोताना मस्तक उपर धारण करे छे तेवी ज रीते पोते
पोताने उत्तम बनावनार पुरुषो आपने पोताना मस्तक उपर धारण करे
छे. २०.
कठिन तपस्या अने व्रत आदिना कठोर नियमोथी दुःखी करे छे छतां
पण तेमने प्राप्त करी शकता नथी परंतु अमे आ लोकमां हमेशां आप
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प्राप्ति करी लईए छीए. २१.
कर्या अने बाकीना बधा देवोए नियोग प्रमाणे आपनी सेवा करी. हे
भगवान! हवे अमे आपनी शी सेवा करीए? आ जातना विचारोमां
अमारुं हृदय डोली रह्युं छे. २२.
नृत्य कर्युं हतुं तथा देवांगनाओना स्तनप्रदेश पासे अडेली मधुर ध्वनि
करनारी वीणाना शब्दनी जे झणझणाटी थई हती, अहो! तेनुं वर्णन कोण
करी शके? अर्थात् कोई नहि. २३.
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आनंद मळे छे तो पंचकल्याणकना समये पलकार रहित नेत्रोथी साक्षात्
दर्शन करनार देवोना महान आनंदनुं शुं वर्णन करी शकाय? अर्थात् करी
शकातुं नथी. २४.
सिद्ध करेला रसोनी जग्याओ जोई लीधी अने चिन्तामणिनुं घर जोई लीधुं
अथवा आ बधां तो आनुषंगिक (गौण) फळो छे, एमने जोवाथी शुं
लाभ? में तो आज निश्चयथी मुक्तिरूपी कन्याना विवाहमंगलनुं स्थान ज
जोई लीधुं छे. २५.
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आपनार आपनी स्तुतिरूप जळमां स्नान कर्युं तथा संतापजन्य खेदना
समूहनी शान्ति करी. हे जिनेन्द्रदेव! हुं हवे जतां जतां आपमां ज चित्तने
जोडतो थको भावना करुं छुं के फरीथी आपना दर्शन थाव. २६.