Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 51-52.

< Previous Page   Next Page >


Page 87 of 256
PDF/HTML Page 127 of 296

 

कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
८७

द्रव्यगुणानामेकास्तित्वनिर्वृत्तित्वादनादिरनिधना सहवृत्तिर्हि समवर्तित्वम्; स एव समवायो जैनानाम्; तदेव संज्ञादिभ्यो भेदेऽपि वस्तुत्वेनाभेदादपृथग्भूतत्वम्; तदेव युतसिद्धिनिबन्धनस्यास्तित्वान्तरस्याभावादयुतसिद्धत्वम् ततो द्रव्यगुणानां समवर्तित्वलक्षण- समवायभाजामयुतसिद्धिरेव, न पृथग्भूतत्वमिति ।।५०।। वण्णरसगंधफासा परमाणुपरूविदा विसेसेहिं दव्वादो य अणण्णा अण्णत्तपगासगा होंति ।।५१।। दंसणणाणाणि तहा जीवणिबद्धाणि णण्णभूदाणि

ववदेसदो पुधत्तं कुव्वंति हि णो सभावादो ।।५२।।

द्रव्य अने गुणो एक अस्तित्वथी रचायां होवाथी तेमनी जे अनादि-अनंत सहवृत्ति (साथे रहेवापणुं) ते खरेखर समवर्तीपणुं छे; ते ज, जैनोना मतमां समवाय छे; ते ज, संज्ञादिथी भेद होवा छतां (द्रव्य अने गुणोने संज्ञा-लक्षण- प्रयोजन वगेरेनी अपेक्षाए भेद होवा छतां) वस्तुपणे अभेद होवाथी अपृथक्पणुं छे. ते ज, युतसिद्धिना कारणभूत *अस्तित्वांतरनो अभाव होवाथी अयुतसिद्धपणुं छे. तेथी समवर्तित्वस्वरूप समवायवाळां द्रव्य अने गुणोने अयुतसिद्धि ज छे, पृथक्पणुं नथी. ५०.

परमाणुमां प्ररूपित वरण, रस, गंध तेम ज स्पर्श जे,
अणुथी अभिन्न रही विशेष वडे प्रकाशे भेदने; ५१.
त्यम ज्ञानदर्शन जीवनियत अनन्य रहीने जीवथी,
अन्यत्वना कर्ता बने व्यपदेशथीन स्वभावथी. ५२.

*अस्तित्वांतर = भिन्न अस्तित्व. [युतसिद्धिनुं कारण भिन्न भिन्न अस्तित्वो छे. लाकडी अने
लाकडीवाळानी माफक गुण अने द्रव्यनां अस्तित्वो कदीये भिन्न नहि होवाथी तेमने युतसिद्धपणुं
होई शके नहि.]

१. समवायनुं स्वरूप समवर्तीपणुं अर्थात् अनादि-अनंत सहवृत्ति छे. द्रव्य अने गुणोने आवो समवाय (अनादि-अनंत तादात्म्यमय सहवृत्ति) होवाथी तेमने अयुतसिद्धि छे, कदीये पृथक्पणुं नथी.