स्कन्धानां पुद्गलव्यवहारसमर्थनमेतत् ।
स्पर्शरसगन्धवर्णगुणविशेषैः षट्स्थानपतितवृद्धिहानिभिः पूरणगलनधर्मत्वात् स्कन्ध- व्यक्त्याविर्भावतिरोभावाभ्यामपि च पूरणगलनोपपत्तेः परमाणवः पुद्गला इति निश्चीयन्ते । स्कन्धास्त्वनेकपुद्गलमयैकपर्यायत्वेन पुद्गलेभ्योऽनन्यत्वात्पुद्गला इति व्यवह्रियन्ते, तथैव च
अन्वयार्थः — [ बादरसौक्ष्म्यगतानां ] बादर ने सूक्ष्मपणे परिणत [ स्कन्धानां ] स्कंधोने [ पुद्गलः ] ‘पुद्गल’ [ इति ] एवो [ व्यवहारः ] व्यवहार छे. [ ते ] तेओ [ षट्प्रकाराः भवन्ति ] छ प्रकारना छे, [ यैः ] जेमनाथी [ त्रैलोक्यं ] त्रण लोक [ निष्पन्नम् ] निष्पन्न छे.
टीकाः — स्कंधोने विषे ‘पुद्गल’ एवो जे व्यवहार छे तेनुं आ समर्थन छे.
(१) जेमां षट्स्थानपतित (छ स्थानोमां समावेश पामती) वृद्धिहानि थाय छे एवा स्पर्श-रस-गंध-वर्णरूप गुणविशेषोने लीधे (परमाणुओ) ‘पूरणगलन’ धर्मवाळा होवाथी तथा (२) स्कंधव्यक्तिना ( – स्कंधपर्यायना) आविर्भाव अने तिरोभावनी अपेक्षाए पण (परमाणुओमां) ‘पूरण-गलन’ घटतां होवाथी परमाणुओ निश्चये ‘१पुद्गलो’ छे. स्कंधो तो २अनेकपुद्गलमय एकपर्यायपणाने लीधे पुद्गलोथी अनन्य
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१. जेमां (स्पर्श-रस-गंध-वर्णनी अपेक्षाए तथा स्कंधपर्यायनी अपेक्षाए) पूरण अने गलन थाय ते
पुद्गल छे. पूरण = पुरावुं ते; भरावुं ते; पूर्ति; पुष्टि; वृद्धि. गलन = गळवुं ते; दुर्बळ थवुं ते;
कृशता; हानि; घटाडो. [(१) परमाणुओना विशेष गुणो जे स्पर्श-रस-गंध-वर्ण छे तेमनामां थती
षट्स्थानपतित वृद्धि ते पूरण छे अने षट्स्थानपतित हानि ते गलन छे; माटे ए रीते परमाणुओ
पूरण-गलनधर्मवाळा छे. (२) परमाणुओमां स्कंधरूप पर्यायनो आविर्भाव थवो ते पूरण छे अने
तिरोभाव थवो ते गलन छे; ए रीते पण परमाणुओमां पूरण-गलन घटे छे.]
२. स्कंध अनेकपरमाणुमय एकपर्याय छे तेथी ते परमाणुओथी अनन्य छे; अने परमाणुओ तो पुद्गलो छे; तेथी स्कंध पण व्यवहारथी ‘पुद्गल’ छे.