Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

चेतनाप्रधानप्रवृत्तयो वनस्पतय इव केवलं पापमेव बध्नन्ति उक्त ञ्च ‘‘ णिच्छयमालंबंता णिच्छयदो णिच्छयं अयाणंता णासंति चरणकरणं बाहरि-चरणालसा केई ।। ’’ नैष्कर्म्यरूप ज्ञानचेतनामां विश्रांति नहि पाम्या थका, (मात्र) व्यक्त-अव्यक्त प्रमादने आधीन वर्तता थका, प्राप्त थयेला हलका (निकृष्ट) कर्मफळनी चेतनाना प्रधानपणावाळी प्रवृत्ति जेने वर्ते छे एवी वनस्पतिनी माफक, केवळ पापने ज बांधे छे. कह्युं पण छे के णिच्छयमालंबंता णिच्छयदो णिच्छयं अयाणंता णासंति चरणकरणं बाहरिचरणालसा केई ।। [अर्थात निश्चयने अवलंबनारा परंतु निश्चयथी (खरेखर) निश्चयने नहि जाणनारा केटलाक जीवो बाह्य चरणमां आळसु वर्तता थका चरणपरिणामनो नाश करे छे.]

वळी जेओ केवळनिश्चयावलंबी वर्तता थका रागादिविकल्परहित परमसमाधिरूप शुद्ध

आत्माने नहि उपलब्ध करता होवा छतां, मुनिए (व्यवहारे) आचरवायोग्य षड्-आवश्यकादिरूप अनुष्ठानने तथा श्रावके (व्यवहारे) आचरवायोग्य दानपूजादिरूप अनुष्ठानने दूषण दे छे, तेओ पण उभयभ्रष्ट वर्तता थका, निश्चयव्यवहार-अनुष्ठानयोग्य अवस्थांतरने नहि जाणता थका पापने ज बांधे छे (अर्थात् केवळ निश्चय-अनुष्ठानरूप शुद्ध अवस्थाथी जुदी एवी जे निश्चय- अनुष्ठान अने व्यवहार-अनुष्ठानवाळी मिश्र अवस्था तेने नहि जाणता थका पापने ज बांधे छे); परंतु जो शुद्धात्मानुष्ठानरूप मोक्षमार्गने अने तेना साधकभूत (व्यवहारसाधनरूप) व्यवहारमोक्षमार्गने माने, तो भले चारित्रमोहना उदयने लीधे शक्तिनो अभाव होवाथी शुभ- अनुष्ठान रहित होय तथापिजोके तेओ शुद्धात्मभावनासापेक्ष शुभ-अनुष्ठानरत पुरुषो जेवा नथी तोपणसराग सम्यक्त्वादि वडे व्यवहारसम्यग्द्रष्टि छे अने परंपराए मोक्षने पामे छे.

आम निश्चय-एकांतना निराकरणनी मुख्यताथी बे वाक्य कहेवामां आव्यां.
[अहीं जे जीवोने ‘व्यवहारसम्यग्द्रष्टि’ कह्या छे तेओ उपचारथी सम्यग्द्रष्टि छे एम न

समजवुं परंतु तेओ खरेखर सम्यग्द्रष्टि छे एम समजवुं. तेमने चारित्र-अपेक्षाए मुख्यपणे रागादि हयात होवाथी सराग सम्यक्त्ववाळा कहीने ‘व्यवहारसम्यग्द्रष्टि’ कह्या छे. श्री जयसेनाचार्यदेवे पोते ज १५०१५१मी गाथानी टीकामां कह्युं छे केज्यारे आ जीव

आगमभाषाए काळादिलब्धिरूप अने अध्यात्मभाषाए शुद्धात्माभिमुख परिणामरूप स्वसंवेदन-
ज्ञानने प्राप्त करे छे त्यारे प्रथम तो ते मिथ्यात्वादि सात प्रकृतिओना उपशम अने क्षयोपशम
वडे सराग-सम्यग्द्रष्टि थाय छे.
]

२४

१. आ गाथानी संस्कृत छाया आ प्रमाणे छेः निश्चयमालम्बन्तो निश्चयतो निश्चयमजानन्तः नाशयन्ति चरणकरणं बाह्यचरणालसाः के ऽपि ।।

२. श्री जयसेनाचार्यदेवरचित टीकामां (व्यवहार-एकांतनुं स्पष्टीकरण कर्या पछी तुरत ज) निश्चय- एकांतनुं नीचे प्रमाणे स्पष्टीकरण करवामां आव्युं छेः