श्री अमृतचंद्राचार्यदेवके रचे हुए काव्य भी अध्यात्मरस एवं आत्मानुभवकी मस्तीसे भरपूर है। श्री
समयसारकी टीकामें आनेवाले काव्योंं
अध्यात्मरसिकोंके हृद्तंत्रीको झंकृत कर देते हैं। अध्यात्मकविके रूपमेंश्री अमृतचंद्राचार्यदेवका स्थान
अद्वितीय है।
संस्कृत टीका लिखी है। श्री पांडे हेमराजजीने समयव्याख्याका भावार्थ
मंडल द्वारा प्रकाशित हिंदी पंचास्तिकायमें मूल गाथाऐं, दोनों संस्कृत टीकाऐं और श्री हेमराजजीकृत
बालावबोधभाषाटीका
गुजराती पद्यानुवाद, संस्कृत समयव्याख्या टीका और उस गाथा–टीकाका अक्षरशः गुजराती अनुवाद
प्रकाशित किया गया है, जिसका यह हिन्दी अनुवाद है। जहाँ विशेष
अनेक स्थानोंपर श्री जयसेनाचार्यदेवकृत तात्पर्यवृत्ति अतिशय उपयोगी हुई है; कुछ स्थानोंपर तो
तात्पर्यवृत्तिके किसी किसी भागका अक्षरशः अनुवाद ही ‘भावार्थ’ अथवा टिप्पणी रूपमें किया है। श्री
हेमराजजीकृत बालावबोधभाषाटीकाका आधार भी किसी स्थानपर लिया है। श्री परमश्रुतप्रभावक
मंडल द्वारा प्रकाशित पंचास्तिकायमें छपीहुई संस्कृत टीकाका हस्तलिखित प्रतियोंके साथ मिलान
करनेपर उसमें कहीं अल्प अशुद्धियाँ दिखाई दी वे इसमें सुधारली गई हैं।
शक्ति मुझे पूज्यपाद सद्गुरुदेवसे ही प्राप्त हुई है। परमोपकारी सद्गुरुदेवके पवित्र जीवनके प्रत्यक्ष
परिचय बिना तथा उनके आध्यात्मिक उपदेशके बिना इस पामरको जिनवाणीके प्रति लेश भी भक्ति
या श्रद्धा कहाँसे प्रगट होती? भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव और उनके शास्त्रोंकी लेश भी महिमा कहाँसे
आती और उन शास्त्रोका अर्थ समझनेकी लेश भी शक्ति कहाँसे प्राप्त होती? इस प्रकार अनुवादकी
समस्त शक्तिका मूल श्री सद्गुरुदेव ही होनेसे वास्तवमें तो सद्गुरुदेवकी अमृतवाणीका स्त्रोत ही
––उनके द्वारा प्राप्त अनमोल उपदेश ही–यथासमय इस अनुवादरूपमें परिणमित हुआ है। जिनके
शक्तिसिंचन तथा छत्रछायासे मैने इस गहन शास्त्रका अनुवादका साहस किया था और जिनकी
कृपासे वह निर्विध्न समाप्त हुआ है उन परमपूज्य परमोपकारी सद्गुरुदेव