Panchastikay Sangrah (Hindi).

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विषय
गाथा
विषय
गाथा
जीवव्याख्यानके उपसंहारकी तथा
सामान्यरूपसे संवरका स्वरूप
१४२
अजीवव्याख्यानके प्रारंभकी सूचना
१२३
विशेषरूपसे संवरका स्वरूप
१४३
अजीवपदार्थका व्याख्यान
निर्जरा पदार्थका व्याख्यान
आकाशादिका अजीवपना दर्शानेके
निर्जराका स्वरूप
१४४
हेतु
१२४
निर्जराका मुख्य कारण
१४५
आकाशादिका अचेतनत्वसामान्य
ध्यानका स्वरूप
१४६
निश्चित करनेके लिये अनुमान
१२५ बन्धपदार्थका व्याख्यान
जीव–पुद्गलके संयोगमें भी, उनके
बन्धका स्वरूप
१४७
भेदके कारणभूत स्वरूपका कथन
१२६–
२७
बंधका बहिरंग और अंतरंग कारण
१४८
जीव–पुद्गलके संयोगसे निष्पन्न
मिथ्यात्वादि द्रव्यपर्यायोंके भी बंधके
होनेवाले अन्य सात पदार्थोंके
बहिरंग कारणपनेका प्रकाशन
१४९
उपोद्घात हेतु जीवकर्म और
मोक्षपदार्थका व्याख्यान
पुद्कर्मके चक्रका वर्णन
१२८–
३०
द्रव्यकर्ममोक्षके हेतुभूत परम–संवर
पुण्य–पापपदार्थका व्याख्यान
रूपसे भावमोक्षके स्वरूपका
पुण्य–पापको योग्य भावके
कथन
१५०–५१
स्वभावका कथन
१३१
द्रव्यकर्ममोक्षके हेतुभूत ऐसी परम
पुण्य–पापका स्वरूप
१३२
निर्जराके कारणभूत ध्यान
१५२
मूर्तकर्मका समर्थन
१३३
द्रव्यमोक्षका स्वरूप
१५३
मूर्तकर्मका मूर्तकर्मके साथ जो बन्ध–
मोक्षमार्गप्रपंचसूचक
चूलिका
प्रकार तथा अमूर्त जीवका मूर्त–कर्मके
मोक्षमार्गका स्वरूप
१५४
साथ जो बन्ध प्रकार उसकी
सूचना
१३४
स्वसमयके ग्रहण और परसमयके
आस्त्रवपदार्थका व्याख्यान
त्यागपूर्वक कर्मक्षय होता है––
पुण्यास्त्रवका स्वरूप
१३५
ऐसे प्रतिपादन द्वारा ’जीवस्वभावमें
प्रशस्त रागका स्वरूप
१३६
नियत चारित्र वह मोक्षमार्ग है’
अनुकम्पाका स्वरूप
१३७
–ऐसा निरूपण
१५५
चित्तकी कलुशताका स्वरूप
१३८
परचारित्रमें प्रवर्तन करनेवालेका
पापास्त्रवका स्वरूप
१३९
स्वरूप
१५६
पापास्त्रवभूत भावोंका विस्तार
१४०
परचारित्रप्रवृत्ति बंधहेतु भूत होनेसे
संवरपदार्थका व्याख्यान
उसे मोक्षमार्गपनेका निषेध
१५७
पपके संवरका कथन
१४१