Panchastikay Sangrah (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
[
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न पुनरन्यथा। व्यवहारनयेन भिन्नसाध्यसाधनभावमवलम्ब्यानादिभेदवासितबुद्धयः सुखेनैवावतर–न्ति
तीर्थं प्राथमिकाः। तथा हीदं श्रद्धेयमिदमश्रद्धेयमयं श्रद्धातेदं श्रद्धानमिदं ज्ञेयमिदमज्ञेयमयं ज्ञातेदं
ज्ञानमिदं चरणीयमिदमचरणीयमयं चरितेदं चरणमिति कर्तव्याकर्तव्यकर्तृकर्मविभा–
गावलोकनोल्लसितपेशलोत्साहाः शनैःशनैर्मोहमल्लमुन्मूलयन्तः, कदाचिदज्ञानान्मदप्रमादतन्त्रतया
शिथिलितात्माधिकारस्यात्मनो
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अन्य प्रकारसे नहीं होती]।
[उपरोक्त बात विशेष समझाई जाती हैः–]
अनादि कालसे भेदवासित बुद्धि होनेके कारण प्राथमिक जीव व्यवहारनयसे
भिन्नसाध्यसाधनभावका अवलम्बन लेकर सुखसे तीर्थका प्रारम्भ करते हैं [अर्थात् सुगमतासे
मोक्षमार्गकी प्रारम्भभूमिकाका सेवन करते हैं]। जैसे कि ‘[१] यह श्रद्धेय [श्रद्धा करनेयोग्य] है,
[२] यह अश्रद्धेय है, [३] यह श्रद्धा करनेवाला है और [४] यह श्रद्धान है; [१] यह ज्ञेय
[जाननेयोग्य] है, [२] यह अज्ञेय है, [३] यह ज्ञाता है और [४] यह ज्ञान हैे; [१] यह
आचरणीय [आचरण करनेयोग्य] है, [२] यह अनाचरणीय है, [३] यह आचरण करनेवाला है
और [४] यह आचरण है;’–इस प्रकार [१] कर्तव्य [करनेयोग्य], [२] अकर्तव्य, [३] कर्ता और
[४] कर्मरूप विभागोंके अवलोकन द्वारा जिन्हें कोमल उत्साह उल्लसित होता है ऐसे वे [प्राथमिक
जीव] धीरे–धीरे मोहमल्लको [रागादिको] उखाड़ते जाते हैं; कदाचित् अज्ञानके कारण [स्व–
संवेदनज्ञानके अभावके कारण] मद [कषाय] और प्रमादके वश होनेसे अपना आत्म–अधिकार
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१। मोक्षमार्गप्राप्त ज्ञानी जीवोंको प्राथमिक भूमिकामें, साध्य तो परिपूर्ण शुद्धतारूपसे परिणत आत्मा है और उसका
साधन व्यवहारनयसे [आंशिक शुद्धिके साथ–साथ रहनेवाले] भेदरत्नत्रयरूप परावलम्बी विकल्प कहे जाते है।
इस प्रकार उन जीवोंको व्यवहारनयसे साध्य और साधन भिन्न प्रकारके कहे गए हैं। [निश्चयनयसे साध्य और
साधन अभिन्न होते हैं।]
२। सुखसे = सुगमतासे; सहजरूपसे; कठिनाई बिना। [जिन्होंने द्रव्यार्थिकनयके विषयभूत शुद्धात्मस्वरूपके
श्रद्धानादि किए हैं ऐसे सम्यग्ज्ञानी जीवोंको तीर्थसेवनकी प्राथमिक दशामें [–मोक्षमार्गसेवनकी प्रारंभिक
भूमिकामें] आंशिक शुद्धिके साथ–साथ श्रद्धानज्ञानचारित्र सम्बन्धी परावलम्बी विकल्प [भेदरत्नत्रय] होते हैं,
क्योंकि अनादि कालसे जीवोंको जो भेदवासनासे वासित परिणति चली आ रही है उसका तुरन्त ही सर्वथा
नाश होना कठिन है।]