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स्यात्कारजीविता जीयाज्जैनी सिद्धान्तपद्धतिः।। २।।
सम्यग्ज्ञानामलज्योतिर्जननी द्विनयाश्रया।
अथातः समयव्याख्या संक्षेपेणाऽभिधीयते।। ३।।
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[अब टीकाकार आचार्यदेव श्लोक द्वारा जिनवाणीकी स्तुति करते हैंः––]
[श्लोकार्थः–] १स्यात्कार जिसका जीवन है ऐसी जैनी [–जिनभगवानकी] सिद्धांतपद्धति – जो कि २दुर्निवार नयसमूहके ३विरोधका नाश करनेवाली औषधि है वह– जयवंत हो। [२]
[अब टीकाकार आचार्यदेव श्लोक द्वारा इस पंचास्तिकायसंग्रह नामक शास्त्रकी टीका रचने की प्रतिज्ञा करते हैं]
[श्लोकार्थः–] अब यहाँसे, जो सम्यग्ज्ञानरूपी निर्मल ज्योतिकी जननी है ऐसी द्विनयाश्रित [दो नयोंका आश्रय करनारी] ४समयव्याख्या [पंचास्तिकायसंग्रह नामक शास्त्रकी समयव्याख्या नामक टीका] संक्षेपसे कही जाती है। [३]
[अब, तीन श्लोकों द्वारा टीकाकार आचार्यदेव अत्यन्त संक्षेपमें यह बतलाते हैं कि इस पंचास्तिकायसंग्रह नामक शास्त्रमें किन–किन विषयोंका निरूपण हैः–––] ------------------------------------------------------- १ ़ ‘स्यात्’ पद जिनदेवकी सिद्धान्तपद्धतिका जीवन है। [स्यात् = कथंचित; किसी अपेक्षासे; किसी प्रकारसे।] २ ़ दुर्निवार = निवारण करना कठिन; टालना कठिन। ३ ़ प्रत्येक वस्तु नित्यत्व, अनित्यत्व आदि अनेक अन्तमय [धर्ममय] है। वस्तुकी सर्वथा नित्यता तथा सर्वथा
पर्याय– अपेक्षासे] अनित्यता माननेमें किंचित विरोध नहींं आता–ऐसा जिनवाणी स्पष्ट समझाती है। इसप्रकार
जिनभगवानकी वाणी स्याद्वाद द्वारा [अपेक्षा–कथनसे] वस्तुका परम यथार्थ निरूपण करके, नित्यत्व–
अनित्यत्वादि धर्मोंमें [तथा उन–उन धर्मोंको बतलानेवाले नयोंमें] अविरोध [सुमेल] अबाधितरूपसे सिद्ध
करती है और उन धर्मोंके बिना वस्तुकी निष्पत्ति ही नहीं हो सकती ऐसा निर्बाधरूपसे स्थापित करती है।
४ ़ समयव्याख्या = समयकी व्याख्या; पंचास्तिकायकी व्याख्या; द्रव्यकी व्याख्या; पदार्थकी व्याख्या। [व्याख्या = व्याख्यान; स्पष्ट कथन; विवरण; स्पष्टीकरण।]