Parmatma Prakash (Gujarati Hindi). Gatha: 84 (Adhikar 1).

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અધિકાર-૧ઃ દોહા-૮૪ ]પરમાત્મપ્રકાશઃ [ ૧૪૧
कुलत्वलक्षण-पारमार्थिकसौख्यादभिन्ने वीतरागपरमानन्दैकस्वभावे शुद्धात्मतत्त्वे योजयति स कः
मनोवचनकायव्यापारपरिणतः स्वशुद्धात्मद्रव्यभावनाशून्यो मूढात्मेति ।।८३।। अथ
८४) दुक्खहँ कारणि जे विसय ते सुह-हेउ रमेइ
मिच्छाइट्ठिउ जीवडउ इत्थु ण काइँ करेइ ।।८४।।
दुःखस्य कारणं ये विषयाः तान् सुखहेतून् रमते
मिथ्याद्रष्टिः जीवः अत्र न किं करोति ।।८४।।
दुक्खहं कारणि जे विषय ते सुहहेउ रमेइ दुःखस्य कारणं ये विषयास्तान् विषयान्
सुखहेतून् मत्वा रमते स कः मिच्छाइट्ठिउ जीवडउ मिथ्याद्रष्टिर्जीवः इत्थु ण काइं करेइ अत्र
जगति योऽसौ दुःखरूपविषयान् निश्चयनयेन सुखरूपान् मन्यते स मिथ्याद्रष्टिः किमकृत्यं पापं न
कायरूप परिणत हुआ शुद्ध अपने आत्मद्रव्यकी भावनासे शून्य (रहित) मूढात्मा है, ऐसा जानो,
अर्थात् अतीन्द्रियसुखरूप आत्मामें परवस्तुका क्या प्रयोजन है
जो परवस्तुको अपना मानता
है, वही मूर्ख हैं ।।८३।।
अब और भी मूढ़का लक्षण कहते हैं
गाथा८४
अन्वयार्थ :[दुःखस्य ] दुःखके [कारणं ] कारण [ये ] जो [विषयाः ] पाँच
इन्द्रियोंके विषय हैं, [तान् ] उनको [सुखहेतुन् ] सुखके कारण जानकर [रमते ] रमण करता
है, वह [मिथ्यादृष्टिः जीवः ] मिथ्यादृष्टि जीव [अत्र ] इस संसारमें [किं न करोति ] क्या
पाप नहीं करता ? सभी पाप करता है, अर्थात् जीवोंकी हिंसा करता है, झूठ बोलता है, दूसरेका
धन हरता है, दूसरेकी स्त्री सेवन करता है, अति तृष्णा करता है, बहुत आरंभ करता है, खेती
करता है, खोटे-खोटे व्यसन करता है, जो न करनेके काम हैं उनको भी करता है
भावार्थ :मिथ्यादृष्टि जीव वीतराग निर्विकल्प परमसमाधिसे उत्पन्न परमानंद
परमसमरसीभावरूप सुखसे पराङ्मुख हुआ निश्चयकर महा दुःखरूप विषयोंको सुखके कारण
શુદ્ધાત્મતત્ત્વમાં યોજે છે (જોડે છે.) અહીં આ ભાવાર્થ છે. ૮૩.
હવે (ફરી પણ મૂઢાત્માઓનું લક્ષણ કહે છે)ઃ
ભાવાર્થ
મિથ્યાદ્રષ્ટિ જીવ વીતરાગ નિર્વિકલ્પ સમાધિથી ઉત્પન્ન પરમાનંદમય