Parmatma Prakash (Gujarati Hindi). Gatha: 120 (Adhikar 1).

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૧૯૨ ]
યોગીન્દુદેવવિરચિતઃ
[ અધિકાર-૧ઃ દોહા-૧૨૦
निजशुद्धात्मादित्यः प्रकाशं करोतीति ।।११९।।
अथ यथा मलिने दर्पणे रूपं न द्रश्यते तथा रागादिमलिनचित्ते शुद्धात्मस्वरूपं न द्रश्यत
इति निरूपयति
१२०) राएँ रंगिए हियवडए देउ ण दीसइ संतु
दप्पणि मइलए बिंबु जिम एहउ जाणि णिभंतु ।।१२०।।
रागेन रञ्जिते हृदये देवः न द्रश्यते शान्तः
दर्पणे मलिने बिम्बं यथा एतत् जानीहि निर्भ्रान्तम् ।।१२०।।
राएं इत्यादि राएं रंगिए हियवडए रागेन रज्जिते हृदये देउ ण दीसइ देवो न द्रश्यते
किंविशिष्टः संतु शान्तो रागादिरहितः द्रष्टांतमाह दप्पणि मइलए दर्पणे मलिने बिंबु जिम
मनरूपी आकाशमें केवलज्ञानादि अनंतगुणरूप किरणोंकर सहित निज शुद्धात्मारूपी सूर्य
प्रकाश करता है
।।११९।।
आगे जैसे मैले दर्पणमें रूप नहीं दीखता, उसी तरह रागादिकर मलिन चित्तमें शुद्ध
आत्मस्वरूप नहीं दिखता, ऐसा कहते हैं
गाथा१२०
अन्वयार्थ :[रागेन रंजिते ] रागकरके रंजित [हृदये ] मनमें [शांतः देवः ] रागादि
रहित आत्म देव [न दृश्यते ] नहीं दीखता, [यथा ] जैसे कि [मलिने दर्पणे ] मैले दर्पणमें
[बिंबं ] मुख नहीं भासता [एतत् ] यह बात हे प्रभाकर भट्ट, तू [निर्भ्रान्तम् ] संदेह रहित
[जानीहि ] जान
भावार्थ :ऐसा श्री योगीन्द्राचार्यने उपदेश दिया है कि जैसे सहस्र किरणोंसे शोभित
सूर्य आकाशमें प्रत्यक्ष दिखता है, लेकिन मेघसमूहकर ढँका हुआ नहीं दिखता, उसी तरह
નિર્મળ ચિત્તરૂપી આકાશમાં કેવળજ્ઞાનાદિ અનંતગુણરૂપી કિરણોથી યુક્ત નિજશુદ્ધાત્મારૂપી સૂર્ય
પ્રકાશ કરે છે, એ તાત્પર્યાર્થ છે. ૧૧૯.
હવે, જેવી રીતે મલિન દર્પણમાં રૂપ દેખાતું નથી તેવી રીતે રાગાદિથી મલિન ચિત્તમાં
શુદ્ધાત્મસ્વરૂપ દેખાતું નથી, એમ કહે છેઃ
ભાવાર્થજેવી રીતે મેઘપટલથી આચ્છાદિત થયેલો, (સહસ્ર કિરણોથી) શોભિત સૂર્ય
વિદ્યમાન હોવા છતાં પણ, દેખાતો નથી તેવી રીતે કામક્રોધાદિ વિકલ્પરૂપ વાદળાંથી આચ્છાદિત