Parmatma Prakash (Gujarati Hindi).

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पुग्गलु इत्यादि पुग्गलु पुद्गलद्रव्यं छव्वहु षड्विधम् तदा चोक्त म्‘‘पुढवी जलं
च छाया चउरिंदिय विसय कम्मपाउग्गा कम्मतीदा एवं छब्भेया पुग्गला होंति ।।’’ एवं
तत्कथं भवति मुत्तु स्पर्शरसगन्धवर्णवती मूर्तिरिति वचनान्मूर्तम् वढ वत्स पुत्र इयर
इतराणि पुद्गलात् शेषद्रव्याणि अमुत्तु स्पर्शाद्यभावादमूर्तानि वियाणि विजानीहि त्वम्
धम्माधम्मु वि धर्माधर्मद्वयमपि गयठियहँ गतिस्थित्योः कारणु कारणं निमित्तं पभणहिँ
प्रभणन्ति कथयन्ति
के कथयन्ति णाणि वीतरागस्वसंवेदनज्ञानिनः इति अत्र द्रष्टव्यम्
तथा [मूर्तः ] मूर्तीक है, [इतराणि ] अन्य सब द्रव्य [अमूर्तानि ] अमूर्त हैं, ऐसा [विजानीहि ]
जान, [धर्माधर्ममपि ] धर्म और अधर्म इन दोनों द्रव्योंको [गतिस्थित्योः कारणं ] गति-
स्थितिका सहायक
कारण [ज्ञानिनः ] केवली श्रुतकेवली [प्रभणंति ] कहते हैं
भावार्थ :पुद्गल द्रव्यके छह भेद दूसरी जगह भी ‘पुढवी जलं’ इत्यादि गाथासे
कहते हैं उसका अर्थ यह है कि बादरबादर १, बादर २, बादरसूक्ष्म ३, सूक्ष्मबादर ४, सूक्ष्म
५, सूक्ष्मसूक्ष्म ६, ये छह भेद पुद्गलके हैं उनमेंसे पत्थर, काठ, तृण आदि पृथ्वी बादरबादर
हैं, टुकड़े होकर नहीं जुड़ते, जल, घी, तैल आदि बादर हैं, जो टूटकर मिल जाते हैं, छाया,
आतप, चाँदनी ये बादरसूक्ष्म हैं, जो कि देखनेमें तो बादर और ग्रहण करनेमें सूक्ष्म हैं, नेत्रको
छोड़कर चार इंद्रियोंके विषय रस, गंधादि सूक्ष्मबादर हैं, जो कि देखनेमें नहीं आते, और
ग्रहण करनेमें आते हैं
कर्मवर्गणा सूक्ष्म हैं, जो अनंत मिली हुई हैं, परंतु दृष्टिमें नहीं आतीं,
और सूक्ष्मसूक्ष्म परमाणु है, जिसका दूसरा भाग नहीं होता इस तरह छह भेद हैं इन छहों
तरहके पुद्गलोंको तू अपने स्वरूपसे जुदा समझ यह पुद्गलद्रव्य स्पर्श-रस-गंध-वर्णको
धारण करता है, इसलिये मूर्तीक है, अन्य धर्म-अधर्म दोनों गति तथा स्थितिके कारण हैं,
ભાવાર્થપુદ્ગલદ્રવ્ય છ પ્રકારનું છે. પુદ્ગલદ્રવ્યના છ ભેદ (શ્રી પંચાસ્તિકાય
ગાથા ૭૬૧માં) પણ કહ્યા છે કે ‘‘पुढवी जलं च छाया चउरिंदिय विषय कम्मपाउगा कम्मातीदा
एवं छब्भेया पुग्गला होंति ।।’’ અર્થપૃથ્વી, જળ, છાયા, નેત્ર સિવાયના ચાર ઇન્દ્રિયના
વિષયો, કર્મવર્ગણા તથા પરમાણુ એમ છ વસ્તુઓથી પુદ્ગલના છ ભેદ સમજી લેવા જોઈએ.
(અર્થાત્ બાદરબાદર, બાદર, બાદરસૂક્ષ્મ, સૂક્ષ્મબાદર, સૂક્ષ્મ અને સૂક્ષ્મસૂક્ષ્મ એમ છ પ્રકારના
પુદ્ગલ છે) એ પ્રમાણે તે કઈ રીતે છે?
‘જે સ્પર્શ, રસ, ગંધ, વર્ણવાળું હોય તે મૂર્ત છે’ એ આગમના વચનાનુસારે તે મૂર્ત છે;
પુદ્ગલ સિવાયના બાકીના પાંચ દ્રવ્યો સ્પર્શાદિનો અભાવ હોવાથી અમૂર્ત છે, એમ હે વત્સ!
તું જાણ. ધર્મદ્રવ્ય ગતિનું અને અધર્મદ્રવ્ય સ્થિતિનું (ઉદાસીન) કારણ છે, એમ
વીતરાગસ્વસંવેદનવાળા જ્ઞાનીઓ કહે છે.
અધિકાર-૨ઃ દોહા-૧૯ ]પરમાત્મપ્રકાશઃ [ ૨૩૫