Parmatma Prakash (Gujarati Hindi).

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जीव लहेसि मरणमपि हे जीव लभस्व भज मा णिय-दंसण-विम्मुहउ मा पुनर्निजदर्शन-
विमुखः सन् पुण्णु वि जीव करेसि पुण्यमपि हे जीव करिष्यसि तथा च स्वकीयनिर्दोषि-
परमात्मानुभूतिरुचिरूपं त्रिगुप्तिगुप्तलक्षणनिश्चयचारित्राविनाभूतं वीतरागसंज्ञं निश्चयसम्यक्त्वं
भण्यते तदभिमुखः सन् हे जीव मरणमपि लभस्व दोषो नास्ति तेन विना पुण्यं मा
कार्षीरिति
अत्र सम्यक्त्वरहिता जीवाः पुण्यसहिता अपि पापजीवा भण्यन्ते सम्यक्त्व-
सहिताः पुनः पूर्वभवान्तरोपार्जितपापफलं भुञ्जाना अपि पुण्यजीवा भण्यन्ते येन कारणेन,
तेन कारणेन सम्यक्त्वसहितानां मरणमपि भद्रम्
सम्यक्त्वरहितानां च पुण्यमपि भद्रं न
भवति कस्मात् तेन निदानबद्धपुण्येन भवान्तरे भोगान् लब्ध्वा पश्चान्नरकादिकं गच्छन्तीति
લક્ષણવાળું જે નિશ્ચયચારિત્ર તેની સાથે અવિનાભૂત વીતરાગ નામનું નિશ્ચયસમ્યક્ત્વ કહેવાય છે
તે નિશ્ચયસમ્યક્ત્વની સન્મુખ થતો હે જીવ! જો તું મરણ પણ પામે તો દોષ નથી પણ સમ્યક્ત્વ
વિનાનું પુણ્ય ન કર.
અહીં, સમ્યક્ત્વ રહિત જીવો પુણ્યસહિત હોવા છતાં પણ, પાપી જીવ કહેવાય છે અને
સમ્યક્ત્વ સહિત જીવો, પૂર્વભવાન્તરમાં ઉપાર્જિત કરેલા પાપફળને ભોગવતા છતાં પણ, પુણ્યજીવો
કહેવાય છે. તે કારણે સમ્યક્ત્વ સહિત જીવોનું મરણ પણ ભદ્ર છે અને સમ્યક્ત્વ રહિત જીવોનું
પુણ્ય પણ ભદ્ર નથી, કારણ કે નિદાનથી બાંધેલા તે પુણ્યથી જીવો ભવાન્તરમાં ભોગોને પામીને
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યોગીન્દુદેવવિરચિતઃ
[ અધિકાર-૨ઃ દોહા-૫૮
निश्चयचारित्र उससे अविनाभावी (तन्मयी) जो वीतरागनिश्चयसम्यक्त्व उसके सन्मुख
हुआ
हे जीव, जो तू मरण भी पावे, तो; दोष नहीं, और उस सम्यक्त्वके बिना मिथ्यात्व
अवस्थामें पुण्य भी करे तो अच्छा नहीं है जो सम्यक्त्व रहित मिथ्यादृष्टि जीव पुण्य
सहित हैं, तो भी पापी ही कहे हैं तथा जो सम्यक्त्व सहित हैं, वे पहले भवमें उपार्जन
किये हुए पापके फलसे दुःख-दारिद्र भोगते हैं, तो भी पुण्याधिकारी ही कहे हैं इसलिये
जो सम्यक्त्व सहित हैं, उनका मरना भी अच्छा मरकर ऊ परको जावेंगे और सम्यक्त्व
रहित हैं, उनका पुण्यकर्म भी प्रशंसा योग्य नहीं है वे पुण्यके उदयसे क्षुद्र (नीच) देव
तथा क्षुद्र मनुष्य होके संसारवनमें भटकेंगे यदि पूर्वके पुण्यको यहाँ भोगते हैं, तो तुच्छ
फल भोगके नरकनिगोदमें पड़ेंगे इसलिए मिथ्यादृष्टियोंका पुण्य भी भला नहीं है
निदानबंध पुण्यसे भवान्तरमें भोगोंको पाकर पीछे नरकमें जावेंगे सम्यग्दृष्टि प्रथम मिथ्यात्व
अवस्थामें किये हुए पापोंके फलसे दुःख भोगते हैं, लेकिन अब सम्यक्त्व मिला है,
इसलिये सदा सुखी ही होवेंगे
आयुके अंतमें नरकसे निकलके मनुष्य होकर ऊ र्ध्वगति ही
पावेंगे, और मिथ्यादृष्टि जो पुण्यके उदयसे देव भी हुए हैं, तो भी देवलोकसे आकर एकेंद्री