Parmatma Prakash (Gujarati Hindi).

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અધિકાર-૨ઃ દોહા-૧૨૫ ]પરમાત્મપ્રકાશઃ [ ૪૨૩
શા માટે? કારણ કે નિશ્ચયશુદ્ધ પ્રાણની હિંસાનું કારણ છે, એમ જાણીને રાગાદિપરિણામરૂપ
નિશ્ચયહિંસા છોડવી એવો ભાવાર્થ છે. વળી નિશ્ચયહિંસાનું સ્વરૂપ પણ (શ્રી જય ધવલ
ભા-૧ પાના ૧૦૨માં) કહ્યું છે કે
‘‘रागादीणमणुप्पा अहिंसकतं त्ति देसियं समए तेसिं चे
उप्पत्ती हिंसेति जिणेहिं णिद्दिट्ठा’’ ।।४२।। (અર્થરાગાદિની અનુત્પત્તિ જ (રાગાદિની ઉત્પત્તિ
ન થવી તે જ) અહિંસકતા છે એમ જિનાગમમાં ઉપદેશ આપ્યો છે તથા રાગાદિની ઉત્પત્તિ
તે જ હિંસા છે, એમ જિનેશ્વરદેવે નિર્દેશ કર્યો છે. ૧૨૫.
त्वं कर्ता नरकादिगतिष्वेकाकी सन् सहिष्यसे हि अत्र रागाद्यभावो निश्चयेनाहिंसा भण्यते
कस्मात् निश्चयशुद्धचैतन्यप्राणस्य रक्षाकारणत्वात्, रागाद्युत्पत्तिस्तु निश्चयहिंसा तदपि कस्मात्
निश्चयशुद्धप्राणस्य हिंसाकारणत्वात् इति ज्ञात्वा रागादिपरिणामरूपा निश्चयहिंसा त्याज्येति
भावार्थः तथा चोक्तं निश्चयहिंसालक्षणम्‘‘रागादीणमणुप्पा अहिंसकतं त्ति देसियं समए
तेसिं चे उप्पत्ती हिंसेति जिणेहिं णिद्दिट्ठा ।।’’ ।।१२५।।
नरकादि गतिमें अकेला सहेगा कुटुम्बके लोग कोई भी तेरे दुःखके बटानेवाले नहीं हैं,
तू ही सहेगा श्रीजिनशासनमें हिंसा दो तरहकी है एक आत्मघात, दूसरी परघात
उनमेंसे जो मिथ्यात्व रागादिकके निमित्तसे देखे, सुने, भोगे हुए भोगोंकी वाँछारूप जो
तीक्ष्ण शस्त्र उससे अपने ज्ञानादि प्राणोंको हनना, वह निश्चयहिंसा है, रागादिककी उत्पत्ति
वह निश्चय हिंसा है
क्योंकि इन विभावोंसे निज भाव घाते जाते हैं ऐसा जानकर
रागादि परिणामरूप निश्चयहिंसा त्यागना वही निश्चयहिंसा आत्मघात है और प्रमादके
योगसे अविवेकी होकर एकेंद्री, दोइंद्री, तेइंद्री, चौइंद्री, पंचेंद्री जीवोंका घात करना वह
परघात है
जब इसने परजीवका घात विचारा, तब इसके परिणाम मलिन हुए, और
भावोंकी मलिनता ही निश्चयहिंसा है, इसलिये परघातरूप हिंसा आत्मघातका कारण है
जो हिंसक जीव है, वह परजीवोंका घातकर अपना घात करता है यह स्वदया परदयाका
स्वरूप जानकर हिंसा सर्वथा त्यागना हिंसाके समान अन्य पाप नहीं है निश्चयहिंसाका
स्वरूप सिद्धांतमें दूसरी जगह ऐसा कहा हैजो रागादिकका अभाव वही शास्त्रमें अहिंसा
कही है, और रागादिककी उत्पत्ति वही हिंसा है, ऐसा कथन जिनशासनमें जिनेश्वरदेवने
दिखलाया है
अर्थात् जो रागादिकका अभाव वह स्वदया और जो प्रमादरहित विवेकरूप
करुणाभाव वह परदया है यह स्वदया-परदया धर्मका मूलकारण है जो पापी हिंसक
होगा उसके परिणाम निर्मल नहीं हो सकते, ऐसा निश्चय है, परजीव घात तो
उसकी आयुके अनुसार है, परंतु इसने जब परघात विचारा, तब आत्मघाती हो
चुका
।।१२५।।