Parmatma Prakash (Gujarati Hindi). Gatha: 148 (Adhikar 2) Dehani Malinatanu Kathan.

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યોગીન્દુદેવવિરચિતઃ
[ અધિકાર-૨ઃ દોહા-૧૪૭
કરવામાં આવતાં, ઘણી શેરડીનો લાભ થાય છે તેવી રીતે અસાર શરીરના આધારથી એક
(કેવળ) વીતરાગસહજાનંદરૂપ સ્વશુદ્ધાત્મસ્વભાવનાં સમ્યક્ શ્રદ્ધાન, સમ્યગ્ જ્ઞાન અને
સમ્યગ્ અનુચરણરૂપ નિશ્ચયરત્નત્રયની ભાવનાના બળથી અને તે નિશ્ચયરત્નત્રયના
સાધક વ્યવહારરત્નત્રયની ભાવનાના બળથી સ્વર્ગ અને મોક્ષનું ફળ મળે છે, એ તાત્પર્ય
છે. ૧૪૭.
હવે, દેહનું અશુચિપણું અને અનિત્યપણું વગેરેના પ્રતિપાદનરૂપે છ દોહાસૂત્રોથી વ્યાખ્યાન
કરે છે. તે આ પ્રમાણેઃ
भम्म भवति तद्यथा हस्तिशरीरे दन्ताश्चमरीशरीरे केशा इत्यादि सारत्व तिर्यक्शरीरे
द्रश्यते, मनुष्यशरीरे किमपि सारत्वं नास्तीति ज्ञात्वा घुणभक्षितेक्षुदण्डवत्परलोकबीजं कृत्वा
निस्सारमपि सारं क्रियते कथमिति चेत् यथा घुणभक्षितेक्षुदण्डे बीजे कृते सति
विशिष्टेक्षूणां लाभो भवति तथा निःसारशरीराधारेण वीतरागसहजानन्दैकस्वशुद्धात्मस्वभाव-
सम्यक्श्रद्धानज्ञानानुचरणरूपनिश्चयरत्नत्रयभावनाबलेनतत्साधकव्यवहाररत्नत्रयभावनाबलेन च
स्वर्गापवर्गफलं गृह्यत इति तात्पर्यम्
।।१४७।।
अथ देहस्याशुचित्वानित्यत्वादिप्रतिपादनरूपेण व्याख्यानं करोति षट्कलेन तथाहि
२७९) उव्वलि चोप्पडि चिट्ठ करि देहि सु-मिट्ठाहार
देहहँ सयल णिरत्थ गय जिमु दुज्जणि उवयार ।।१४८।।
करके सार करना चाहिये जैसे घुनोंका खाया हुआ ईख किसी कामका नहीं है, एक बीजके
कामका है, सो उसको बोकर असारसे सार किया जाता है, उसी प्रकार मनुष्यदेह किसी
कामका नहीं, परंतु परलोकका बोजकर असारको सार करना चाहिये इस देहसे परलोक
सुधारना ही श्रेष्ठ है जैसे घुनेसे खाये गये ईखको बोनेसे अनेक ईखोंका लाभ होता है, वैसे
ही इस असार शरीरके आधारसे वीतराग परमानंद शुद्धात्मस्वभावका सम्यक् श्रद्धान ज्ञान
आचरणरूप निश्चयरत्नत्रयकी भावनाके बलसे मोक्ष प्राप्त किया जाता है, और निश्चयरत्नत्रयका
साधक जो व्यवहाररत्नत्रय उसकी भावनाके बलसे स्वर्ग मिलता है, तथा परम्परासे मोक्ष होता
है
यह मनुष्यशरीर परलोक सुधारनेके लिये होवे तभी सार है, नहीं तो सर्वथा असार
है ।।१४७।।
आगे देहको अशुचि, अनित्य आदि दिखानेका छह दोहोंमें व्याख्यान करते हैं