Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
পদার্থনা যুগপত্ পরিচ্ছিত্তিরূপ কেবলজ্ঞান ছে এম স্থাপবা মাটে ‘জ্ঞানময’ বিশেষণ আপবামাং
আব্যুং ছে. এবা তে পরমাত্মাওনে নমীনে-প্রণমীনে-নমস্কার করীনে, এবো ক্রিযাকারক সংবংধ ছে.
অহীং ‘नत्वा’ এবুং শব্দরূপ বাচিক দ্রব্যনমস্কার অসদ্ভূত ব্যবহারনযথী জাণবো অনে
কেবলজ্ঞানাদি অনংতগুণনা স্মরণরূপ ভাবনমস্কার অশুদ্ধ নিশ্চযনযথী জাণবো, শুদ্ধ
নিশ্চযনযথী বংদ্যবংদকভাব নথী.
আ প্রমাণে পদখংডনারূপে শব্দার্থ কহ্যো, নযবিভাগনা কথনরূপে নযার্থ কহ্যো, বৌদ্ধাদিনা
মতোনা স্বরূপনা কথননা অবসর পর মতার্থ পণ কহ্যো.
আবা গুণবিশিষ্ট সিদ্ধো মুক্ত ছে এবো আগমার্থ প্রসিদ্ধ ছে.
অহীং নিত্য, নিরংজন অনে জ্ঞানমযরূপ পরমাত্মদ্রব্য উপাদেয ছে এবো ভাবার্থ ছে.
আ রীতে শব্দ, নয, মত, আগম অনে ভাবার্থ ব্যাখ্যানকালে যথাসংভব সর্বত্র জাণবা.১.
হবে সংসারসমুদ্রনে তরবানা উপাযভূত জে বীতরাগ নির্বিকল্প সমাধিরূপ নাব ছে তেনা
পর চঢীনে জেও আগামী কালমাং শিবময (কল্যাণময), নিরুপম, জ্ঞানময থশে তেমনে হুং
नयेन ज्ञातव्यः, केवलज्ञानाद्यनन्तगुणस्मरणरूपो भावनमस्कारः पुनरशुद्धनिश्चयनयेनेति,
शुद्धनिश्चयनयेन वन्द्यवन्दकभावो नास्तीति । एवं पदखण्डनारूपेण शब्दार्थः कथितः,
नयविभागकथनरूपेण नयार्थोऽपि भणितः, बौद्धादिमतस्वरूपकथनप्रस्तावे मतार्थोऽपि निरूपितः,
एवंगुणविशिष्टाः सिद्धा मुक्त ाः सन्तीत्यागमार्थः प्रसिद्धः । अत्र नित्यनिरञ्जनज्ञानमयरूपं
परमात्मद्रव्यमुपादेयमिति भावार्थः । अनेन प्रकारेण शब्दनयमतागमभावार्थो व्याख्यानकाले
यथासंभवं सर्वत्र ज्ञातव्य इति ।।१।।
अथ संसारसमुद्रोत्तरणोपायभूतं वीतरागनिर्विकल्पसमाधिपोतं समारुह्य ये शिवमय-
অধিকার-১ : দোহা-১ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ১৩
गुणस्मरणरूप भावनमस्कार कहा जाता है । यह द्रव्य-भावरूप नमस्कार व्यवहारनयकर
साधक-दशामें कहा है, शुद्धनिश्चयनयकर वंद्य-वंदक भाव नहीं है । ऐसे पदखंडनारूप शब्दार्थ
कहा और नयविभागरूप कथनकर नयार्थ भी कहा, तथा बौद्ध, नैयायिक, सांख्यादि मतके
कथन करनेसे मतार्थ कहा, इस प्रकार अनंतगुणात्मक सिद्धपरमेष्ठी संसारसे मुक्त हुए हैं, यह
सिद्धांतका अर्थ प्रसिद्ध ही है, और निरंजन ज्ञानमई परमात्माद्रव्य आदरने योग्य है, उपादेय है,
यह भावार्थ है, इसी तरह शब्द नय, मत, आगम, भावार्थ व्याख्यानके अवसर पर सब जान
लेना ।।१।।
अब संसार-समुद्रके तरनेका उपाय जो वीतराग निर्विकल्प समाधिरूप जहाज है, उसपर