Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-৯১ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৩৬৯
अथ ये सर्वसंगपरित्यागरूपं जिनलिङ्गं गृहीत्वापीष्टपरिग्रहान् गृह्णन्ति ते छर्दिं कृत्वा
पुनरपि गिलन्ति तामिति प्रतिपादयति —
२१८) जे जिण-लिंगु धरेवि मुणि इट्ठ - परिग्गह लेंति ।
छद्दि करेविणु ते जि जिय सा पुणु छद्दि गिलंति ।।९१।।
ये जिनलिङ्गं धृत्वापि मुनय इष्टपरिग्रहान् लान्ति ।
छर्दिं कृत्वा ते एव जीव तां पुनः छर्दिं गिलन्ति ।।९१।।
ये केचन जिनलिङ्गं गृहीत्वापि मुनयस्तपोधना इष्टपरिग्रहान् लान्ति गृह्णान्ति । ते किं
कुर्वन्ति । छर्दिं कृत्वा त एव हे जीव तां पुनश्छर्दिं गिलन्तीति । तथापि गृहस्थापेक्षया
चेतनपरिग्रहः पुत्रकलत्रादिः, सुवर्णादिः पुनरचेतनः साभरणवनितादि पुनर्मिश्रः । तपोधनापेक्षया
छात्रादिः सचित्तः, पिच्छकमण्डल्वादिः पुनरचित्तः, उपकरणसहितश्छात्रादिस्तु मिश्रः । अथवा
হবে, জে সর্বসংগনা পরিত্যাগরূপ জিনলিংগনে গ্রহীনে পণ ইষ্ট পরিগ্রহোনুং গ্রহণ করে ছে
তে বমন করীনে তেনে ফরীথী গলে ছে, এম কহে ছে : —
ভাবার্থ: — গৃহস্থনী অপেক্ষাএ পুত্র, কলত্রাদি চেতন পরিগ্রহ ছে অনে সুবর্ণাদি
অচেতন পরিগ্রহ ছে অনে আভরণ সহিত বনিতা মিশ্র পরিগ্রহ ছে. তপোধননী অপেক্ষাএ
শিষ্যাদি সচিত্ত পরিগ্রহ ছে অনে পীংছী, কমংডল আদি অচিত্ত পরিগ্রহ ছে অনে উপকরণসহিত
ছাত্রাদি মিশ্র পরিগ্রহ ছে. অথবা মিথ্যাত্ব, রাগাদি সচিত্ত পরিগ্রহ ছে অনে দ্রব্যকর্ম, নোকর্মরূপ
आगे जो सर्वसंगके त्यागरूप जिनमुद्राको ग्रहण कर फि र परिग्रहको धारण करता है,
वह वमन करके पीछे निगलता है, ऐसा कथन करते हैं —
गाथा – ९१
अन्वयार्थ : — [ये ] जो [मुनयः ] मुनि [जिनलिंगं ] जिनलिंगको [धृत्वापि ]
ग्रहणकर [इष्टपरिग्रहान् ] फि र भी इच्छित परिग्रहोंको [लांति ] ग्रहण करते हैं, [जीव ] हे
जीव, [ते एव ] वे ही [छर्दिं कृत्वा ] वमन करके [पुनः ] फि र [तां छर्दिं ] उस वमनको
पीछे [गिलंति ] निगलते हैं ।
भावार्थ : — परिग्रहके तीन भेदोंमें गृहस्थकी अपेक्षा चेतन परिग्रह पुत्र कलत्रादि,
अचेतन परिग्रह आभरणादि, और मिश्र परिग्रह आभरण सहित स्त्री, पुत्रादि, साधुकी अपेक्षा
सचित परिग्रह शिष्यादि, अचित्त परिग्रह पीछी, कमंडलु, पुस्तकादि और मिश्र परिग्रह पीछी,