Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-৯৭ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৩৭৯
तथाऽपि शुद्धनिश्चयेन तदावरणाभावात् पूर्वोक्त लक्षणकेवलज्ञानेन निवृत्तत्वात्सर्वेऽपि जीवा
ज्ञानमयाः जम्मण-मरण-विमुक्क व्यवहारनयेन यद्यपि जन्ममरणसहितास्तथापि निश्चयेन वीतराग-
निजानन्दैकरूपसुखामृतमयत्वादनाद्यनिधनत्वाच्च शुद्धात्मस्वरूपाद्विलक्षणस्य जन्ममरणनिर्वर्तकस्य
कर्मण उदयाभावाज्जन्ममरणविमुक्त ाः । जीव-पएसहिं सयल सम यद्यपि संसारावस्थायां
व्यवहारेणोपसंहारविस्तारयुक्त त्वाद्देहमात्रा मुक्त ावस्थायां तु किंचिदूनचरमशरीरप्रमाणास्तथापि
निश्चयनयेन लोकाकाशप्रमितासंख्येयप्रदेशत्वहानिवृद्धयभावात् स्वकीयस्वकीयजीवप्रदेशैः सर्वे
समानाः । सयल वि सगुणहिं एक्क यद्यपि व्यवहारेणाव्याबाधानन्तसुखादिगुणाः संसारावस्थायां
कर्मझंपितास्तिष्ठन्ति, तथापि निश्चयेन कर्माभावात् सर्वेऽपि स्वगुणैरेकप्रमाणा इति । अत्र यदुक्तं
জ্ঞানাবরণথী ঢংকাযেলুং ছে তোপণ শুদ্ধনিশ্চযনযথী কেবলজ্ঞানাবরণনো অভাব হোবাথী পূর্বোক্ত
লক্ষণবালা কেবলজ্ঞানথী রচাযেল হোবাথী সর্বে জীবো জ্ঞানময ছে. ‘जम्ममरणविमुक्ताः’
ব্যবহারনযথী জোকে জন্মমরণসহিত ছে তোপণ নিশ্চযনযথী বীতরাগ নিজানংদ জেনুং এক রূপ
ছে এবা সুখামৃতময হোবাথী অনে অনাদি অনংত হোবাথী অনে শুদ্ধাত্মস্বরূপথী বিলক্ষণ জন্ম
-মরণনে উত্পন্ন করনার কর্মনা উদযনা অভাবথী জন্ম-মরণ রহিত ছে.
‘जीव पएसहिं सयल सम’ জোকে সংসার-অবস্থামাং ব্যবহারনযথী সংকোচ-বিস্তার সহিত
হোবাথী দেহমাত্র ছে অনে মুক্ত-অবস্থামাং চরমশরীরথী কিংচিত্ ন্যূন শরীরপ্রমাণ ছে তোপণ
নিশ্চযনযথী লোকাকাশপ্রমাণ অসংখ্যপ্রদেশত্বনী হানি-বৃদ্ধি ন হোবাথী পোতপোতানা জীবপ্রদেশোথী
সর্ব জীবো সমান ছে.
‘सयल वि सगुणहिं एक्क’ জোকে ব্যবহারনযথী অব্যাবাধ, অনংতসুখাদি গুণো সংসার-
অবস্থামাং কর্মোথী আচ্ছাদিত ছে তোপণ নিশ্চযনযথী কর্মনো অভাব হোবাথী সর্ব জীবো
পোতপোতানা গুণোথী একসরখা ছে.
ढँका हुआ है, तो भी शुद्ध निश्चयसे केवलज्ञानावरणका अभाव होनेसे केवलज्ञानस्वभावसे सभी
जीव केवलज्ञानमयी हैं । यद्यपि व्यवहारनयकर सब संसारी जीव जन्म-मरण सहित हैं, तो भी
निश्चयनयकर वीतराग निजानंदरूप अतीन्द्रिय सुखमयी हैं, जिनकी आदि भी नहीं और अंत
भी नहीं ऐसे हैं, शुद्धात्मस्वरूपसे विपरीत जन्म मरणके उत्पन्न करनेवाले जो कर्म उनके उदयके
अभावसे जन्म-मरण रहित हैं । यद्यपि संसारअवस्थामें व्यवहारनयकर प्रदेशोंका संकोच
विस्तारको धारण करते हुए देहप्रमाण हैं, और मुक्त - अवस्थामें चरम (अंतिम) शरीरसे कुछ
कम देहप्रमाण हैं, तो भी निश्चयनयकर लोकाकाशप्रमाण असंख्यातप्रदेशी हैं, हानि – वृद्धि न
होनेसे अपने प्रदेशोंकर सब समान हैं, और यद्यपि व्यवहारनयसे संसार - अवस्थामें इन जीवोंके
अव्याबाध अनंत सुखादिगुण कर्मोंसे ढँके हुए हैं, तो भी निश्चयनयकर कर्मके अभावसे सभी