Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration). Gatha-111 (Adhikar 2)*4.

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-১১১৪ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৪০৫
जइ इच्छसि यदि इच्छसि भो साधो द्वादशविधतपःफ लम् कथंभूतम् महद्विपुलं
स्वर्गापवर्गरूपं ततः कारणात् वीतरागनिजानन्दैकसुखरसास्वादानुभवेन तृप्तो भूत्वा
मनोवचनकायेषु भोजनगृद्धिं वर्जय इति तात्पर्यम्
।।१११।।
उक्तं च
२४१) जे सरसिं संतुट्ठ-मण विरसि कसाउ वहंति
ते मुणि भोयण-घार गणि णवि परमत्थु मुणंति ।।१११।।
ये सरसेन संतुष्टमनसः विरसे कषायं वहन्ति
ते मुनयः भोजनगृध्राः गणय नैव परमार्थं मन्यन्ते ।।१११।।
जे इत्यादि जे सरसिं संतुट्ठमण ये केचन सरसेन सरसाहारेण संतुष्टमनसः विरसि
कसाउ वहंति विरसे विरसाहारे सति कषायं वहन्ति कुर्वन्ति े ते पूर्वोक्त ाः मुणि
ভাবার্থ:হে যোগী! জো তুং বার প্রকারনা তপনুং মহান ভারে ফল এবা স্বর্গ-মোক্ষনে
ইচ্ছে ছে, তো বীতরাগ নিজানংদ এক সুখরসনো আস্বাদরূপ অনুভবথী তৃপ্ত থযো থকো, মন,
বচন অনে কাযাথী ভোজননী লোলুপতানো ত্যাগ কর! এ সারাংশ ছে. ১১১
৩.
বলী, কহ্যুং ছে কে :
ভাবার্থ:গৃহস্থোনো আহারদানাদিক জ পরম ধর্ম ছে, সম্যক্ত্ব সহিত তেনাথী
(আহারাদিকথী) জ তেও পরংপরাএ মোক্ষ মেলবে ছে শা মাটে গৃহস্থোনো তে জ পরম ধর্ম ছে?
वीतराग निजानंद एक सुखरसका आस्वाद उसके अनुभवसे तृप्त हुआ [मनोवचनयोः ] मन,
वचन और [काये ] कायसे [भोजनगृद्धिं ] भोजनकी लोलुपता को [विवर्जयस्व ] त्याग कर
दे
यह सारांश है ।।१११।।
और भी कहा है
गाथा१११
अन्वयार्थ :[ये ] जो जोगी [सरसेन ] स्वादिष्ट आहारसे [संतुष्टमनसः ] हर्षित
होते हैं, और [विरसे ] नीरस आहारमें [कषायं ] क्रोधादि कषाय [वहंति ] करते हैं, [ते
मुनयः ] वे मुनि [भोजन गृध्राः ] भोजनके विषयमें गृद्धपक्षीके समान हैं, ऐसा तू [गणय ]
समझ
वे [परमार्थं ] परमतत्त्वको [नैव मन्यंते ] नहीं समझते हैं
भावार्थ :जो कोई वीतरागके मार्गसे विमुख हुए योगी रस सहित स्वादिष्ट आहारसे
खुश होते हैं, कभी किसीके घर छह रसयुक्त आहार पावें तो मनमें हर्ष करें, आहारके देनेवालेसे