Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
অধিকার-২ : দোহা-১১২ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৪০৭
२४२) रूवि पयंगा सद्दि मय गय फ ासहिँ णासंति ।
अलिउल गंधइँ मच्छ रसि किम अणुराउ करंति ।।११२।।
रूपे पतङ्गाः शब्दे मृगाः गजाः स्पर्शैः नश्यन्ति ।
अलिकुलानि गन्धेन मत्स्याः रसे किं अनुरागं कुर्वन्ति ।।११२।।
रूवि इत्यादि । रूपे समासक्त ाः पतङ्गाः शब्दे मृगा गजाः १स्पर्शैः गन्धेनालिकुलानि मत्स्या
रसासक्त ा नश्यन्ति यतः कारणात् ततः कारणात्कथं तेषु विषयेष्वनुरागं कुर्वन्तीति । तथाहि
पञ्चेन्द्रियविषयाकांक्षाप्रभृतिसमस्तापध्यानविकल्पै रहितः शून्यः स्पर्शनादीन्द्रियकषायातीतनिर्दोषि-
परमात्मसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुचरणरूपनिर्विकल्पसमाधिसंजातवीतरागपरमाह्लादैकलक्षणसुखामृतरसास्वादेन
पूर्ण कलशवद्भरितावस्थः केवलज्ञानादिव्यक्ति रूपस्य कार्यसमयसारस्योत्पादकः शुद्धोपयोगस्वभावो
ভাবার্থ: — পাংচ ইন্দ্রিযনা বিষযোনী আকাংক্ষাথী মাংডীনে সমস্ত অপধ্যাননা বিকল্পোথী
রহিত-শূন্য (খালী), স্পর্শনাদি ইন্দ্রিয বিষযকষাযথী অতীত এবা নির্দোষ পরমাত্মানাং সম্যক্
শ্রদ্ধান, সম্যগ্জ্ঞান, সম্যগ্ অনুচরণরূপ নির্বিকল্প সমাধিথী উত্পন্ন বীতরাগ পরম আহ্লাদ
জেনুং এক লক্ষণ ছে এবা সুখামৃতরসনা আস্বাদথী, পূর্ণ ছলোছল ভরেলা কলশনী জেম
পরিপূর্ণ, কেবলজ্ঞানাদিনী ব্যক্তিরূপ কার্যসমযসারনো উত্পাদক এবো জ শুদ্ধোপযোগস্বভাব কারণ
गाथा – ११२
अन्वयार्थ : — [रूपे ] रूपमें लीन हुए [पतंगा ] पतंग जीव दीपकमें जलकर मर जाते
हैं, [शब्दे ] शब्द विषयमें लीन [मृगाः ] हिरण व्याधके बाणोंसे मारे जाते हैं, [गजाः ] हाथी
[स्पर्शैः ] स्पर्श विषयके कारण गड्ढेमें पड़कर बाँधे जाते हैं, [गंधेन ] सुगंधकी लोलुपतासे
[अलिकुलानि ] भौंरे काँटोंमें या कमलमें दबकर प्राण छोड़ देते और [रसे ] रसके लोभी
[मत्स्याः ] मच्छ [नश्यंति ] धीवरके जालमें पड़कर मारे जाते हैं । एक एक विषय कषायकर
आसक्त हुए जीव नाशको प्राप्त होते हैं, तो पंचेन्द्रिका कहना ही क्या है ? ऐसा जानकर विवेकी
जीव विषयोंमें [किं ] क्या [अनुरागं ] प्रीति [कुर्वंति ] करते हैं ? कभी नहीं करते ।
भावार्थ : — पंचेन्द्रियके विषयोंकी इच्छा आदि जो सब खोटे ध्यान वे ही हुए विकल्प
उनसे रहित विषय कषाय रहित जो निर्दोष परमात्मा उसका सम्यक् श्रद्धान ज्ञान आचरणरूप
जो निर्विकल्प समाधि, उससे उत्पन्न वीतराग परम आहलादरूप सुख – अमृत, उसके रसके
स्वादकर पूर्ण कलशकी तरह भरे हुए जो केवलज्ञानादि व्यक्तिरूप कार्यसमयसार, उसका
১. পাঠান্তর : — स्पर्शैः = स्पर्शे.