Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Bengali transliteration). Gatha-10 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
‘‘इत्यातिदुर्लभरूपां बोधिं लब्ध्वा यदि प्रमादी स्यात्
संसृतिभीमारण्ये भ्रमति वराको नरः सुचिरम् ।।’’
অর্থ :অতিদুর্লভ বোধি পামীনে জো জীব প্রমাদী থায তো তে বরাক (বিচারো, রংক)
পুরুষ সংসাররূপী ভযংকর অরণ্যমাং ঘণা কাল সুধী ভ্রমণ করে ছে.
পণ বোধিসমাধিনা অভাবে পূর্বোক্ত সংসারমাং ভ্রমণ করতা মেং শুদ্ধ আত্মসমাধিথী উত্পন্ন
বীতরাগ পরমানংদরূপ সুখামৃত জরায পণ প্রাপ্ত ন কর্যুং, পণ তেনাথী বিপরীত আকুলতানা উত্পাদক
বিবিধ শারীরিক অনে মানসিক চার গতিনা ভ্রমণমাং থতাং দুঃখো জ প্রাপ্ত কর্যা.
অত্রে জে বীতরাগ পরমানংদরূপ সুখনী প্রাপ্তি ন থতাং, আ জীব অনাদিকালথী ভটক্যো
তে জ সুখ উপাদেয ছে এবো ভাবার্থ ছে. ৯.
হবে জে পরমাত্ম স্বভাবনী প্রাপ্তি ন থতাং, জীব অনাদিকালথী ভটক্যো তে
পরমাত্মস্বভাবনুং ব্যাখ্যান শ্রীপ্রভাকরভট্ট পূছে ছে :
समाधिरिति बोधिसमाधिलक्षणं यथासंभवं सर्वत्र ज्ञातव्यम् तथा चोक्त म्‘‘इत्यतिदुर्लभरूपां
बोधिं लब्ध्वा यदि प्रमादी स्यात् संसृतिभीमारण्ये भ्रमति वराको नरः सुचिरम् ।।’’ परं किंतु
बोधिसमाध्यभावे पूर्वोक्त संसारे भ्रमतापि मया शुद्धात्मसमाधिसमुत्पन्नवीतरागपरमानन्दसुखामृतं
किमपि न प्राप्तं किंतु तद्विपरीतमाकुलत्वोत्पादकं विविधशारीरमानसरूपं चतुर्गतिभ्रमणसंभवं
दुःखमेव प्राप्तमिति
अत्र यस्य वीतरागपरमानन्दसुखस्यालाभे भ्रमितो जीवस्तदेवोपादेयमिति
भावार्थः ।।।।
अथ यस्यैव परमात्मस्वभावस्यालाभेऽनादिकाले भ्रमितो जीवस्तमेव पृच्छति
१०) चउ-गइ-दुक्खहँ तत्ताहँ जो परमप्पउ कोइ
चउ-गइ-दुक्ख-विणासयरु कहहु पसाएँ सो वि ।।१०।।
৩০ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-১ : দোহা-১০
‘‘इत्यतिदुर्लभरूपां’’ इत्यादि इसका अभिप्राय ऐसा है, कि यह महान दुर्लभ जो
जैनशास्त्रका ज्ञान है, उसको पाके जो जीव प्रमादी हो जाता है, वह रंक पुरुष बहुत
कालतक संसाररूपी भयानक वनमें भटकता है
सारांश यह हुआ, कि वीतराग परमानंद
सुखके न मिलनेसे यह जीव संसाररूपी वनमें भटक रहा है, इसलिये वीतराग परमानंद
सुख ही आदर करने योग्य है
।।।।
आगे जिस परमात्म-स्वभावके अलाभमें यह जीव अनादि कालसे भटक रहा था, उसी
परमात्मस्वभावका व्याख्यान प्रभाकरभट्ट सुनना चाहता है