Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
प्रतिपादकप्रथममहाधिकारमध्ये प्रभाकरभट्ट विज्ञप्तिकथनमुख्यत्वेन दोहकसूत्रत्रयं गतम् ।
अथ प्रभाकरभट्टविज्ञापनानन्तरं श्रीयोगीन्द्रदेवास्त्रिविधात्मानं कथयन्ति —
११) पुणु पुणु पणविवि पंच-गुरु भावेँ चित्ति धरेवि ।
भट्टपहायर णिसुणि तुहुँ अप्पा तिविहु कहेवि (विँ?) ।।११।।
पुनः पुनः प्रणम्य पञ्चगुरून् भावेन चित्ते धृत्वा ।
भट्टप्रभाकर निश्रृणु त्वम् आत्मानं त्रिविधं कथयामि ।।११।।
पुणु पुणु पणविवि पंचगुरु भावें चित्ति धरेवि पुनः पुनः प्रणम्य पञ्चगुरूनहम् । किं
कृत्वा । भावेन भक्ति परिणामेन मनसि धृत्वा पश्चात् भट्टपहायर णिसुणि तुहुं अप्पा तिविहु
कहेवि हे प्रभाकरभट्ट ! निश्चयेन श्रृणु त्वं त्रिविधमात्मानं कथयाम्यहमिति । बहिरात्मान्तरात्म-
परमात्मभेदेन त्रिविधात्मा भवति । अयं त्रिविधात्मा यथा त्वया पृष्टो हे प्रभाकरभट्ट तथा
৩২ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-১ : দোহা-১১
इस कथनकी मुख्यतासे तीन दोहे हुए । आगे प्रभाकरभट्टकी विनती सुनकर
श्रीयोगीन्द्रदेव तीन प्रकारकी आत्माका स्वरूप कहते हैं —
गाथा – ११
अन्वयार्थ : — [पुन: पुन: ] बारम्बार [पञ्चगुरुन् ] पंचपरमेष्ठियोंको [प्रणम्य ]
नमस्कारकर और [भावेन ] निर्मल भावोंकर [चित्ते ] मनमें [धृत्वा ] धारण करके [‘अहं’ ]
मैं [त्रिविधं ] तीन प्रकारके [आत्मानं ] आत्माको [कथयामि ] कहता हूँ, सो [हे प्रभाकर
भट्ट ] हे प्रभाकरभट्ट, [त्वं ] तू [निशृणु ] निश्चयसे सुन ।
भावार्थ : — बहिरात्मा, अंतरात्मा, परमात्माके भेदकर आत्मा तीन तरहका है, सो हे
प्रभाकरभट्ट’ जैसे तूने मुझसे पूछा है, उसी तरहसे भव्योंमें महाश्रेष्ठ भरतचक्रवर्ती, सगरचक्रवर्ती,
এ প্রমাণে ত্রণ প্রকারনা আত্মানা প্রতিপাদক প্রথম মহাধিকারমাং শ্রী প্রভাকরভট্টনী
বিনংতীনা কথননী মুখ্যতাথী ত্রণ দোহক সূত্রো সমাপ্ত থযাং.
হবে শ্রী প্রভাকরভট্টনী বিনংতী সাংভলীনে শ্রী যোগীন্দ্রদেব ত্রণ প্রকারনা আত্মানুং স্বরূপ
কহে ছে : —
ভাবার্থ : — বহিরাত্মা, অন্তরাত্মা, অনে পরমাত্মানা ভেদথী ত্রণ প্রকারনা আত্মা
ছে. তো হে প্রভাকর ভট্ট! তে জেবী রীতে আ ত্রণ প্রকারনো আত্মা মনে পুছ্যো তেবী রীতে
ভেদাভেদরত্নত্রযনী ভাবনা জেমনে প্রিয ছে এবা, পরমাত্মানী ভাবনাথী উত্পন্ন বীতরাগ