Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
নির্বিকল্প স্বসংবেদনজ্ঞানরূপে পরিণমতো অন্তরাত্মা ছে, পরম ভাবকর্ম, দ্রব্যকর্ম, নোকর্মরহিত
-ব্রহ্ম-শুদ্ধবুদ্ধ-এক স্বভাবী পরমাত্মা ছে. শুদ্ধ, বুদ্ধ স্বভাবনুং স্বরূপ কহেবামাং আবে ছে.
শুদ্ধ অর্থাত্ রাগাদিথী রহিত, বুদ্ধ অর্থাত্ অনংতজ্ঞানাদি চতুষ্টয সহিত, এ প্রমাণে শুদ্ধ,
বুদ্ধ, স্বভাবনুং স্বরূপ সর্বত্র জাণবুং. এ রীতে আত্মা ত্রণ প্রকারে ছে.
বীতরাগনির্বিকল্পসমাধিথী উত্পন্ন, এক (কেবল) সদানংদরূপ, সুখামৃত স্বভাবনে নহি
প্রাপ্ত করতো, জে দেহনে জ আত্মা মানে ছে তে মূঢাত্মা ছে.
অহীং (আ ত্রণ প্রকারনা আত্মামাংথী) বহিরাত্মা হেয ছে, তেনী অপেক্ষাএ জো কে
অন্তরাত্মা উপাদেয ছে তো পণ সর্ব প্রকারে উপাদেযভূত পরমাত্মানী অপেক্ষাএ তে হেয ছে. এবো
তাত্পর্যার্থ ছে. ১৩.
হবে পরমসমাধিমাং স্থিত থযেলো জে দেহথী ভিন্ন জ্ঞানময পরমাত্মানে জাণে ছে তে
অন্তরাত্মা ছে এম কহে ছে : —
विचक्षणो वीतरागनिर्विकल्पस्वसंवेदनज्ञानपरिणतोऽन्तरात्मा, ब्रह्म शुद्धबुद्धैकस्वभावः परमात्मा ।
शुद्धबुद्धस्वभावलक्षणं कथ्यते — शुद्धो रागादिरहितो बुद्धोऽनन्तज्ञानादिचतुष्टयसहित इति
शुद्धबुद्धस्वभावलक्षणं सर्वत्र ज्ञातव्यम् । स च कथंभूतः ब्रह्म । परमो भावकर्मद्रव्यकर्मनोकर्म-
रहितः । एवमात्मा त्रिविधो भवति । देहु जि अप्पा जो मुणइ सो जणु मूढु हवेइ
वीतरागनिर्विकल्पसमाधिसंजातसदानन्दैकसुखामृतस्वभावमलभमानः सन् देहमेवात्मानं यो मनुते
जानाति स जनो लोको मूढात्मा भवति इति । अत्र बहिरात्मा हेयस्तदपेक्षया
यद्यप्यन्तरात्मोपादेयस्तथापि सर्वप्रकारोपादेयभूतपरमात्मापेक्षया स हेय इति तात्पर्यार्थः ।।१३।।
अथ परमसमाधिस्थितः सन् देहविभिन्नं ज्ञानमयं परमात्मानं योऽसौ जानाति
सोऽन्तरात्मा भवतीति निरूपयति —
१४) देह-विभिण्णउ णाणमउ जो परमप्पु णिएइ ।
परम-समाहि-परिट्ठियउ पंडिउ सो जि हवेइ ।।१४।।
অধিকার-১ : দোহা-১৩ ]পরমাত্মপ্রকাশ: [ ৩৭
हुए परमानंद सुखामृतको नहीं पाता हुआ मूर्ख है, अज्ञानी है । इन तीन प्रकारके आत्माओंमेंसे
बहिरात्मा तो त्याज्य ही है — आदर योग्य नहीं है । इसकी अपेक्षा यद्यपि अंतरात्मा अर्थात्
सम्यग्दृष्टि वह उपादेय है, तो भी सब तरहसे उपादेय (ग्रहण करने योग्य) जो परमात्मा उसकी
अपेक्षा वह अंतरात्मा हेय ही है, शुद्ध परमात्मा ही ध्यान करने योग्य है, ऐसा जानना ।।१३।।
आगे परमसमाधिमें स्थित, देहसे भिन्न ज्ञानमयी (उपयोगमयी) आत्माको जो जानता
है, वह अन्तरात्मा है, ऐसा कहते हैं —