Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
শ্রী দিগংবর জৈন স্বাধ্যাযমংদির ট্রস্ট, সোনগঢ - ৩৬৪২৫০
शुद्धात्मोपादेयो अन्यद्धेयमिति भावार्थः ।।२३।।
अथ योऽसौ वेदादिविषयो न भवति परमात्मा समाधिविषयो भवति पुनरपि तस्यैव
स्वरूपं व्यक्तं करोति —
२४) केवल – दंसण – णाणमउ केवल – सुक्ख – सहाउ ।
केवल – वीरिउ सो मुणहि जो जि परावरु भाउ ।।२४।।
केवलदर्शनज्ञानमयः केवलसुखस्वभावः ।
केवलवीर्यस्तं मन्यस्व य एव परापरो भावः ।।२४।।
केवलोऽसहायः ज्ञानदर्शनाभ्यां निर्वृत्तः केवलदर्शनज्ञानमयः केवलानन्तसुखस्वभावः
केवलानन्तवीर्यस्वभाव इति यस्तमात्मानं मन्यस्व जानीहि । पुनश्च कथंभूतः य एव । यः
অহীং অর্থভূত শুদ্ধ আত্মা জ উপাদেয ছে, অন্য সর্ব হেয ছে এবো ভাবার্থ
ছে. ২৩.
হবে জে পরমাত্মা বেদাদিনো বিষয নথী, সমাধিনো বিষয ছে তেনুং জ ফরী স্বরূপ
প্রগট করে ছে : —
হবে ‘ত্রিভুবনবংদিত’ (ত্রণ লোকথী বংদিত) ইত্যাদি লক্ষণোথী যুক্ত জে শুদ্ধাত্মা
কহেবামাং আব্যো তে লোকাগ্রে রহে ছে তেম কহে ছে : —
৫০ ]যোগীন্দুদেববিরচিত: [ অধিকার-১ : দোহা-২৪
क्लेश कर रहे हैं । इस जगह अर्थरूप शुद्धात्मा ही उपादेय है, अन्य सब त्यागने योग्य हैं,
यह सारांश समझना ।।२३।।
आगे कहते हैं कि जो परमात्मा वेदशास्त्रगम्य तथा इन्द्रियगम्य नहीं, केवल
परमसमाधिरूप निर्विकल्पध्यानकर ही गम्य है, इसिलिए उसीका स्वरूप फि र कहते हैं —
गाथा – २४
अन्वयार्थ : — [यः ] जो [केवलदर्शन ज्ञानमयः ] केवलज्ञान केवलदर्शनमयी है,
अर्थात् जिसके परवस्तुका आश्रय (सहायता) नहीं, आप ही सब बातोंमें परिपूर्ण ऐसे ज्ञान
दर्शनवाला है, [केवलसुखस्वभावः ] जिसका केवलसुख स्वभाव है, और जो [केवलवीर्यः ]
अनंतवीर्यवाला है, [स एव ] वही [परापरभावः ] उत्कृष्ट अर्हंतपरमेष्ठीसे भी अधिक
स्वभाववाला सिद्धरूप शुद्धात्मा है [मन्यस्व ] ऐसा मानो ।
भावार्थ : — परमात्माके दो भेद हैं, पहला सकलपरमात्मा दूसरा निष्कलपरमात्मा