पदार्थना युगपत् परिच्छित्तिरूप केवळज्ञान छे एम स्थापवा माटे ‘ज्ञानमय’ विशेषण आपवामां
आव्युं छे. एवा ते परमात्माओने नमीने-प्रणमीने-नमस्कार करीने, एवो क्रियाकारक संबंध छे.
अहीं ‘नत्वा’ एवुं शब्दरूप वाचिक द्रव्यनमस्कार असद्भूत व्यवहारनयथी जाणवो अने
केवळज्ञानादि अनंतगुणना स्मरणरूप भावनमस्कार अशुद्ध निश्चयनयथी जाणवो, शुद्ध
निश्चयनयथी वंद्यवंदकभाव नथी.
आ प्रमाणे पदखंडनारूपे शब्दार्थ कह्यो, नयविभागना कथनरूपे नयार्थ कह्यो, बौद्धादिना
मतोना स्वरूपना कथनना अवसर पर मतार्थ पण कह्यो.
आवा गुणविशिष्ट सिद्धो मुक्त छे एवो आगमार्थ प्रसिद्ध छे.
अहीं नित्य, निरंजन अने ज्ञानमयरूप परमात्मद्रव्य उपादेय छे एवो भावार्थ छे.
आ रीते शब्द, नय, मत, आगम अने भावार्थ व्याख्यानकाळे यथासंभव सर्वत्र जाणवा.१.
हवे संसारसमुद्रने तरवाना उपायभूत जे वीतराग निर्विकल्प समाधिरूप नाव छे तेना
पर चढीने जेओ आगामी काळमां शिवमय (कल्याणमय), निरुपम, ज्ञानमय थशे तेमने हुं
नयेन ज्ञातव्यः, केवलज्ञानाद्यनन्तगुणस्मरणरूपो भावनमस्कारः पुनरशुद्धनिश्चयनयेनेति,
शुद्धनिश्चयनयेन वन्द्यवन्दकभावो नास्तीति । एवं पदखण्डनारूपेण शब्दार्थः कथितः,
नयविभागकथनरूपेण नयार्थोऽपि भणितः, बौद्धादिमतस्वरूपकथनप्रस्तावे मतार्थोऽपि निरूपितः,
एवंगुणविशिष्टाः सिद्धा मुक्ताः सन्तीत्यागमार्थः प्रसिद्धः । अत्र नित्यनिरञ्जनज्ञानमयरूपं
परमात्मद्रव्यमुपादेयमिति भावार्थः । अनेन प्रकारेण शब्दनयमतागमभावार्थो व्याख्यानकाले
यथासंभवं सर्वत्र ज्ञातव्य इति ।।१।।
अथ संसारसमुद्रोत्तरणोपायभूतं वीतरागनिर्विकल्पसमाधिपोतं समारुह्य ये शिवमय-
अधिकार-१ः दोहा-१ ]परमात्मप्रकाशः [ १३
गुणस्मरणरूप भावनमस्कार कहा जाता है । यह द्रव्य-भावरूप नमस्कार व्यवहारनयकर
साधक-दशामें कहा है, शुद्धनिश्चयनयकर वंद्य-वंदक भाव नहीं है । ऐसे पदखंडनारूप शब्दार्थ
कहा और नयविभागरूप कथनकर नयार्थ भी कहा, तथा बौद्ध, नैयायिक, सांख्यादि मतके
कथन करनेसे मतार्थ कहा, इस प्रकार अनंतगुणात्मक सिद्धपरमेष्ठी संसारसे मुक्त हुए हैं, यह
सिद्धांतका अर्थ प्रसिद्ध ही है, और निरंजन ज्ञानमई परमात्माद्रव्य आदरने योग्य है, उपादेय है,
यह भावार्थ है, इसी तरह शब्द नय, मत, आगम, भावार्थ व्याख्यानके अवसर पर सब जान
लेना ।।१।।
अब संसार-समुद्रके तरनेका उपाय जो वीतराग निर्विकल्प समाधिरूप जहाज है, उसपर