Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration). Gatha: 4 (Adhikar 1).

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साथे अविनाभावी निर्दोष परमात्मानां सम्यक्श्रद्धान, सम्यग्ज्ञान, अने सम्यक्आचरणरूप
अभेदरत्नत्रयात्मक निर्विकल्प समाधिरूप अग्निमां कर्मरूपी इन्धननी आहुति द्वारा होम करता
तेओ बिराजे छे. अहीं उपादेयभूत शुद्ध आत्मद्रव्यनी प्राप्तिना उपायरूप होवाथी निर्विकल्प
समाधि ज उपादेय छे एवो भावार्थ छे. ३.
हवे जेओ पूर्वकाळे शुद्ध आत्मस्वरूप पामीने स्वसंवेदनज्ञानना बळथी कर्मोनो क्षय
करीने सिद्ध थईने निर्वाणमां वसे छे तेमने हुं नमस्कार करुं छुंः
कुर्वन्तस्तिष्ठन्ति वीतरागपरमसामायिकभावनाविनाभूतनिर्दोषपरमात्मसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुचरण-
रूपाभेदरत्नत्रयात्मकनिर्विकल्पसमाधिवैश्वानरे कर्मेन्धनाहुतिभिः कृत्वा होमं कुर्वन्त इति
अत्र शुद्धात्मद्रव्यस्योपादेयभूतस्य प्राप्त्युपायभूतत्वान्निर्विकल्पसमाधिरेवोपादेय इति भावार्थः ।।३।।
अथ पूर्वकाले शुद्धात्मस्वरूपं प्राप्य स्वसंवेदनज्ञानबलेन कर्मक्षयं कृत्वा ये सिद्धा भूत्वा
निर्वाणे वसन्ति तानहं वन्दे
४) ते पुणु वंदउँ सिद्ध-गण जे णिव्वाणि वसंति
णाणिं तिहुयणि गरुया वि भव-सायरि ण पडंति ।।४।।
तान् पुनः वन्दे सिद्धगणान् ये निर्वाणे वसन्ति
ज्ञानेन त्रिभुवने गुरूका अपि भवसागरे न पतन्ति ।।४।।
अधिकार-१ः दोहा-४ ]परमात्मप्रकाशः [ १७
भावनाकर संयुक्त जो निर्दोष परमात्माका यथार्थ श्रद्धानज्ञानआचरणरूप अभेद रत्नत्रय उस
मई निर्विकल्पसमाधिरूपी अग्निमें कर्मरूप ईंधनको होम करते हुए तिष्ठ रहे हैं इस कथनमें
शुद्धात्मद्रव्यकी प्राप्तिका उपायभूत निर्विकल्प समाधि उपादेय (आदरने योग्य) है, यह भावार्थ
हुआ
।।३।।
आगे जो महामुनि होकर शुद्धात्मस्वरूपको पाके सम्यग्ज्ञानके बलसे कर्मोंका क्षयकर
सिद्ध हुए निर्वाणमें बस रहे हैं, उनको मैं वन्दता हूँ
गाथा
अन्वयार्थ :[पुन: ] फि र [‘अहं’ ] मैं [तान् ] उन [सिद्धगणान् ] सिद्धोंको
[वन्दे ] बन्दता हूँ, [ये ] जो [निर्वाणे ] मोक्षमें [वसन्ति ] तिष्ठ रहे हैं कैसे हैं, वे [ज्ञानेन ]
ज्ञानसे [त्रिभुवने गुरुका अपि ] तीनलोकमें गुरु हैं, तो भी [भवसागरे ] संसार-समुद्रमें [न