Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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अधिकार-२ः दोहा-९९ ]परमात्मप्रकाशः [ ३८३
भिन्नभिन्नरूपेण द्रश्यत इति परिहारमाह बहुषु जलघटेषु चन्द्रकिरणोपाधिवशेन जलपुद्गला
एव चन्द्राकारेण परिणता न चाकाशस्थचन्द्रमाः अत्र द्रष्टान्तमाह यथा
देवदत्तमुखोपाधिवशेन नानादर्पणानां पुद्गला एव नानामुखाकारेण परिणमन्ति न च
देवदत्तमुखं नानारूपेण परिणमति
यदि परिणमति तदा दर्पणस्थं मुखप्रतिबिम्बं चेतनत्वं
प्राप्नोति, न च तथा, तथैकचन्द्रमा अपि नानारूपेण न परिणमतीति किं च न चैको
ब्रह्मनामा कोऽपि द्रश्यते प्रत्यक्षेण यश्चन्द्रवन्नानारूपेण भविष्यति इत्यभिप्रायः ।।९९।।
अथ सर्वजीवविषये समदर्शित्वं मुक्ति कारणमिति प्रकटयति
आकाशमां रहेलो चंद्र परिणम्यो नथी. अहीं तेनुं द्रष्टांत आपे छे. जेवी रीते देवदत्तना
मुखनी उपाधिना वशे अनेक दर्पणोनां पुद्गलो ज मुखना अनेक आकाररूपे परिणमे छे
पण देवदत्तनुं मुख अनेकरूपे (अनेक आकार रूपे) परिणमतुं नथी. जो (देवदत्तनुं मुख
अनेक आकाररूपे) परिणमतुं होय तो दर्पणमां रहेला मुखनुं प्रतिबिंब चेतनपणाने पामे,
पण तेम थतुं नथी (पण चेतन थतुं नथी). तेवी रीते एक चंद्रमा पण अनेकरूपे
परिणमतो नथी.
वळी, एक ब्रह्म नामनो कोई प्रत्यक्षपणे जोवामां आवतो नथी के जे चंद्रनी पेठे
अनेकरूपे थतो होय, एवो अभिप्राय छे. ९९.
भी प्रदेशोंके भेदसे सब ही जीव जुदे-जुदे हैं इस पर कोई परवादी प्रश्न करता है कि
जैसे एक ही चन्द्रमा जलके भरे बहुत घड़ोंमें जुदा जुदा भासता है, उसी प्रकार एक ही
जीव बहुत शरीरों में भिन्न-भिन्न भास रहा है
उसका श्रीगुरु समाधान करते हैंजो बहुत
जलके घड़ोंमें चन्द्रमाकी किरणोंकी उपाधिसे जलजातिके पुद्गल ही चन्द्रमाके आकारके
परिणत हो गये हैं, लेकिन आकाशमें स्थित चन्द्रमा तो एक ही है, चन्द्रमा तो बहुत
स्वरूप नहीं हो गया
उनका दृष्टान्त देते हैं जैसे कोई देवदत्तनामा पुरुष उसके मुखकी
उपाधि (निमित्त) से अनेक प्रकारके दर्पणोंसे शोभायमान काचका महल उसमें वे
काचरूप पुद्गल ही अनेक मुखके आकारके परिणत हुए हैं, कुछ देवदत्तका मुख
अनेकरूप नहीं परिणत हुआ है, मुख एक ही है
जो कदाचित् देवदत्तका मुख अनेकरूप
परिणमन करे, तो दर्पणमें तिष्ठते हुए मुखोंके प्रतिबिम्ब चेतन हो जावें परंतु चेतन नहीं
होते, जड़ ही रहते हैं, उसी प्रकार एक चन्द्रमा भी अनेकरूप नहीं परिणमता वे जलरूप
पुद्गल ही चन्द्रमा के आकारमें परिणत हो जाते हैं इसलिए ऐसा निश्चय समझना, कि
जो कोई ऐसा कहते हैं कि एक ही ब्रह्मके नानारूप दिखते हैं यह कहना ठीक नहीं
है जीव जुदे-जुदे हैं ।।९९।।