याद्रशः केवलज्ञानादिव्यक्तिरूपः कार्यसमयसारः, निर्मलो भावकर्मद्रव्यकर्मनोकर्म-
मलरहितः, ज्ञानमयः केवलज्ञानेन निर्वृत्तः केवलज्ञानान्तर्भूतानन्तगुणपरिणतः सिद्धो मुक्तो
मुक्तौ निवसति तिष्ठति देवः परमाराध्यः ताद्रशः पूर्वोक्तलक्षणसद्रशः निवसति तिष्ठति ब्रह्मा
शुद्धबुद्धैकस्वभावः परमात्मा पर उत्कृष्टः । क्व निवसति । देहे । केन । शुद्धद्रव्यार्थिकनयेन ।
कथंभूतेन । शक्तिरूपेण हे प्रभाकरभट्ट भेदं मा कार्षीस्त्वमिति । तथा चोक्तं श्रीकुन्द-
कुन्दाचार्यदेवैः मोक्षप्राभृते — ‘‘णमिएहिं जं णमिज्जइ झाइज्जइ झाइएहिं अणवरयं । थुव्वंतेहिं
थुणिज्जइ देहत्थं किं पि तं मुणह ।।’ अत्र स एव परमात्मोपादेय इति भावार्थः ।।२६।।
भावार्थः — भावकर्म, द्रव्यकर्म, नोकर्म एवा मळथी रहित ज्ञानमय-केवळज्ञानथी
रचायेल-केवळज्ञानमां अन्तर्भूत अनंतगुणरूपे परिणत, सिद्ध-मुक्त, केवळज्ञानादिनी व्यक्तिरूप
कार्यसमयसाररूप परम आराध्य एवा देव मुक्तिमां रहे छे तेवो ज पूर्वोक्त लक्षणवाळो
परब्रह्म शुद्ध बुद्ध जेनो एक स्वभाव छे एवो उत्कृष्ट ब्रह्मा-परमात्मा-
शुद्धद्रव्यार्थिकनयथी शक्तिरूपे देहमां रहे छे. तेथी हे प्रभाकरभट्ट! तुं सिद्धभगवान अने
पोतामां भेद न कर. मोक्षप्राभृत (गाथा १०३)मां श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे कह्युं
पण छे के — ‘‘णमिएहिं जं णमिज्जइ झाइएहिं अणवरयं । थुव्वंतेहिं थुणिज्जइ देहत्थं किं पि तं
मुणइ ।।’’
अर्थः — बीजाओ वडे जेमने नमस्कार करवामां आवे छे एवा महापुरुषोथी पण
जेमने नमस्कार करवामां आवे छे, बीजाओ वडे जेमने ध्याववामां आवे छे एवा
आचार्यपरमेष्ठी आदिथी पण जेमने ध्याववामां आवे छे अने बीजाओ वडे जेमने
स्तववामां आवे छे एवा सत्पुरुषोथी पण जेमने स्तववामां आवे छे एवो जे कोई
(जीवपदार्थ) देहमां रहेल छे ते परमात्माने तुं जाण.
अत्रे ते ज परमात्मा उपादेय छे एवो भावार्थ छे. २६.
अधिकार-१ः दोहा-२६ ]परमात्मप्रकाशः [ ५३
उत्कृष्ट शुद्ध द्रव्यार्थिकनयकर शक्तिरूप परमात्मा [देहे ] शरीरमें [निवसति ] तिष्ठता है,
इसलिये हे प्रभाकरभट्ट, तूँ [भेदम् ] सिद्ध भगवान्में और अपनेमें भेद [मा कुरु ] मत कर ।
ऐसा ही मोक्षपाहुड़में श्री कुन्दकुन्दाचार्यने भी कहा है ‘‘णमिएहिं’’ इत्यादि — इसका यह
अभिप्राय है कि जो नमस्कार योग्य महापुरुषोंसे भी नमस्कार करने योग्य है, स्तुति करने योग्य
सत्पुरुषोंसे स्तुति किया गया है, और ध्यान करने योग्य आचार्यपरमेष्ठी वगैरहसे भी ध्यान करने
योग्य ऐसा जीवनामा पदार्थ इस देहमें बसता है, उसको तूँ परमात्मा जान ।
भावार्थ : — वही परमात्मा उपादेय है ।।२६।।