Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Devanagari transliteration).

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विद्यन्ते कानि अनाकुलत्वलक्षणपारमार्थिकसौख्यविपरीतान्याकुलत्वोत्पादकानीन्द्रियसुख-
दुःखानि यत्र च निर्विकल्पपरमात्मनो विलक्षणः संकल्पविकल्परूपो मनोव्यापारो नास्ति
सो अप्पा मुणि जीव तुहुं अण्णु परिं अवहारु तं पूर्वोक्तलक्षणं स्वशुद्धात्मानं मन्यस्व
नित्यानन्दैकरूपं वीतरागनिर्विकल्पसमाधौ स्थित्वा जानीहि हे जीव, त्वम् अन्य-
त्परमात्मस्वभावाद्विपरीतं पञ्चेन्द्रियविषयस्वरूपादिविभावसमूहं परस्मिन् दूरे सर्वप्रकारेणापहर
त्यजेति तात्पर्यार्थः
निर्विकल्पसमाधौ सर्वत्र वीतरागविशेषणं किमर्थं कृततं इति पूर्वपक्षः
परिहारमाह यत एव हेतोः वीतरागस्तत एव निर्विकल्प इति हेतुहेतुमद्भावज्ञापनार्थम्, अथवा
ये सरागिणोऽपि सन्तो वयं निर्विकल्पसमाधिस्था इति वदन्ति तन्निषेधार्थम्, अथवा
विपरीत, आकुळताने उत्पन्न करनार, इन्द्रियजनित सुखदुःख नथी अने जे शुद्धात्मस्वरूपमां
निर्विकल्प परमात्माथी विलक्षण, संकल्पविकल्परूप मनोव्यापार नथी ते निज शुद्धात्माने हे
जीव! तुं जाण
नित्यानंद जेनुं एक रूप छे एवी वीतराग निर्विकल्प समाधिमां स्थित थईने
जाण, परमात्मस्वभावथी विपरीत, पांच इन्द्रियोना विषयस्वरूप आदि अन्य विभावसमूहने
दूरथी ज सर्व प्रकारे छोड. ए तात्पयार्थ छे.
पूर्वपक्ष :निर्विकल्प समाधिमां सर्वत्र ‘वीतराग’ विशेषण शा माटे लगाडवामां
आव्युं छे?
तेनुं समाधाान :वीतराग होवाना कारणे ज ते निर्विकल्प छे एम कारण ने
कार्यपणुं जणाववा माटे (कारण के ते वीतराग छे तेथी ज ते निर्विकल्प छे एम हेतु
हेतुमाननो भाव जणाववा माटे.); अथवा पोते सरागी होवा छतां पण अमे निर्विकल्प
समाधिमां रहीए छीए एम जेओ कहे छे तेमना निषेध अर्थे; अथवा श्वेतशंखनी जेम
आ स्वरूपविशेषण छे एम समजवा माटे, (जेम शंख छे ते श्वेत ज होय छे तेम जे
निर्विकल्प समाधि होय छे ते वीतराग रूप ज होय छे, ए रीते स्वरूप प्रगट करवा माटे)
५६ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
[ अधिकार-१ः दोहा-२८
अन्य परमात्मस्वभावसे विपरीत पाँच इन्द्रियोंके विषय आदि सब विकार परिणामोंको दूरसे ही
त्याग, उनका सर्वथा ही त्याग कर
यहाँ पर किसी शिष्यने प्रश्न किया कि निर्विकल्पसमाधिमें
सब जगह वीतराग विशेषण क्यों कहा है ? उसका उत्तर कहते हैंजहाँ पर वीतरागता है,
वहीं निर्विकल्पसमाधिपना है, इस रहस्यको समझानेके लिये अथवा जो रागी हुए कहते हैं कि
हम निर्विकल्पसमाधिमें स्थित हैं, उनके निषेधके लिये वीतरागता सहित निर्विकल्पसमाधिका
कथन किया गया है, अथवा सफे द शंखकी तरह स्वरूप प्रगट करनेके लिये कहा गया है,
१. वीतरागपणुं हेतु छे, निर्विकल्पपणुं हेतुमान (कार्य) छे.