Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (English transliteration). Gatha: 55 (Adhikar 1).

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अथाष्टकर्माष्टादशदोषरहितत्वापेक्षया शून्यो भवतीति न च केवलज्ञानादिगुणापेक्षया
चेति दर्शयति
५५) अट्ठ वि कम्मइँ बहुविहइँ णवणव दोस वि जेण
सुद्धहँ एक्कु वि अत्थि णवि सुण्णु वि वुच्चइ तेण ।।५५।।
अष्टावपि कर्माणि बहुविधानि नवनव दोषा अपि येन
शुद्धानां एकोऽपि अस्ति नैव शून्योऽपि उच्यते तेन ।।५५।।
अष्टावपि कर्माणि बहुविधानि नवनव दोषा अपि येन कारणेन शुद्धात्मनां तन्मध्ये
चैकोऽप्यस्ति नैव शून्योऽपि भण्यते तेन कारणेनैवेति तद्यथा शुद्धनिश्चयनयेन
have AtmA ATh karma ane aDhAr doShathI rahit hovAnI apekShAe ‘shUnya’ chhe, paN
kevaLagnAnAdi guNonI apekShAe shUnya nathI em darshAve chhe
bhAvArthashuddhanishchayanayathI kShudhAdi doShonAn kAraNabhUt gnAnAvaraNAdi ATh
dravyakarmo, kAryabhUt kShudhAtRuShAdi aDhAr doSho nathI, ‘api’ shabdathI sattA, chaitanya, bodh Adi
shuddhaprANarUpathI shuddha jIvatva hovA chhatAn paN dash prANarUp ashuddha jIvatva nathI, te kAraNe
sansArI jIvo nishchayanayathI shaktirUpe rAgAdi vibhAvathI shUnya paN chhe ane mukta AtmAo
ne to rAgAdi vibhAvathI pragaTapaNe shUnyapaNun chhe, paN bauddhAdinI mAnyatAnI jem AtmAne
आगे आठ कर्म और अठारह दोषोंसे रहित हुआ विभाव-भावोंकर रहित होनेसे शून्य
कहा जाता है, लेकिन केवलज्ञानादि गुणकी अपेक्षा शून्य नहीं है, सदा पूर्ण ही है, ऐसा
दिखलाते हैं
गाथा५५
अन्वयार्थ :[येन ] जिस कारण [अष्टौ अपि ] आठों ही [बहुविधानि कर्माणि ]
अनेक भेदोंवाले कर्म [नवनव दोषा अपि ] अठारह ही दोष इनमेंसे [एकः अपि ] एक भी
[शुद्धानां ] शुद्धात्माओंके [नैव अस्ति ] नहीं है, [तेन ] इसलिये [शून्योऽपि ] शून्य भी
[भण्यते ] कहा जाता है
भावार्थ :इस आत्माके शुद्धनिश्चयनयकर ज्ञानावरणादि आठ द्रव्यकर्म नहीं है,
क्षुधादि दोषोंके कारणभूत कर्मोंके नाश हो जानेसे क्षुधा-तृषादि अठारह दोष कार्यरूप नहीं
हैं, और अपि शब्दसे सत्ता चैतन्य ज्ञान आनंदादि शुद्ध प्राण होनेपर भी इन्द्रियादि दश
94 ]
yogIndudevavirachita
[ adhikAr-1 dohA-55