Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (English transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 99 of 565
PDF/HTML Page 113 of 579

 

background image
तं परियाणहि दव्वु तुहुं जं गुणपज्जयजुत्तु तत्परि समन्ताज्जानीहि द्रव्यं त्वम्
तत्किम् यद्गुणपर्याययुक्तं , गुणपर्यायस्य स्वरूपं कथयति सहभुव जाणहि ताहं गुण
कमभुव पज्जउ वुत्तु सहभुवो जानीहि तेषां द्रव्याणां गुणाः, क्रमभुवः पर्याया उक्ता
भणिता इति
तद्यथा गुणपर्ययवद् द्रव्यं ज्ञातव्यम् इदानीं तस्य द्रव्यस्य गुणपर्यायाः
कथ्यन्ते सहभुवो गुणाः, क्रमभुवः पर्यायाः, इदमेकं तावत्सामान्यलक्षणम् अन्वयिनो
गुणाः व्यतिरेकिणः पर्यायाः, इति द्वितीयं च यथा जीवस्य ज्ञानादयः पुद्गलस्य
वर्णादयश्चेति ते च प्रत्येकं द्विविधाः स्वभावविभावभेदेनेति तथाहि जीवस्य
bhAvArtha‘गुणपर्ययवद् द्रव्यं’ jANavun (guNaparyAyavALun te dravya jANavun) have te dravyanA
guNaparyAy kahevAmAn Ave chheसहभुवो गुणाः क्रमभुवः पर्यायाः (sahabhAvI guNo chhe, kramabhAvI
paryAyo chhe.) A ek pahelun sAmAnya lakShaN chhe. अन्वयिनः गुणाः व्यतिरेकिणः पर्यायाः (anvayI
te guNo chhe, vyatirekI te paryAyo chhe), e bIjun lakShaN chhe. jem kejIvanA gnAnAdi ane
pudgalanA varNAdi guNo ane te darek svabhAv ane vibhAvanA bhedathI be prakAre chhe te A
pramANe
pratham jIvanA guNaparyAyo kahevAmAn Ave chhe. siddhatvAdi jIvanA asAdhAraN svabhAv-
paryAyo chhe ane kevaLagnAnAdi jIvanA asAdhAraN svabhAvaguNo chhe. agurulaghu te sarvadravyanA
उसको [त्वं ] हे प्रभाकरभट्ट, तू [द्रव्यं ] द्रव्य [परिजानिहि ] जान, [सहभुवः ] जो सदाकाल
पाये जावें, नित्यरूप हों, वे तो [तेषां गुणाः ] उन द्रव्योंके गुण हैं, [क्रमभुवः ] और जो
द्रव्यकी अनेकरूप परिणति क्रमसे हों अर्थात् अनित्यपनेरूप समय-समय उपजे, विनशे,
नानास्वरूप हों वह [पर्यायाः ] पर्याय [उक्ताः ] कही जाती हैं
।।
भावार्थ :जो द्रव्य होता है, वह गुणपर्यायकर सहित होता है यही कथन
तत्त्वार्थसूत्रमें कहा है ‘‘गुणपर्यायवद्द्रव्यं’’ अब गुणपर्यायका स्वरूप कहते हैं‘‘सहभुवो
गुणाः क्रमभुवः पर्यायाः’’ यह नयचक्र ग्रंथका वचन है, अथवा ‘‘अन्वयिनो गुणा
व्यतिरेकिणः पर्यायाः’’ इनका अर्थ ऐसा है, कि गुण तो सदा द्रव्यसे सहभावी हैं, द्रव्यमें
हमेशा एकरूप नित्यरूप पाये जाते हैं, और पर्याय नानारूप होती हैं, जो परिणति पहले
समयमें थी, वह दूसरे समयमें नहीं होती, समय-समयमें उत्पाद व्ययरूप होता है, इसलिये
पर्याय क्रमवर्ती कहा जाता है
अब इसका विस्तार कहते हैंजीव द्रव्यके ज्ञान आदि
अर्थात् ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, आदि अनंत गुण हैं, और पुद्गल-द्रव्यके स्पर्श, रस, गंध,
वर्ण, इत्यादि अनंतगुण हैं, सो ये गुण तो द्रव्यमें सहभावी हैं, अन्वयी हैं, सदा नित्य हैं, कभी
adhikAr-1 dohA-57 ]paramAtmaprakAsha [ 99