Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (English transliteration). Gatha: 11 Shree Guruno Trana Prakarna Aatmana Kathanana Upadeshrupe Uttar.

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प्रतिपादकप्रथममहाधिकारमध्ये प्रभाकरभट्ट विज्ञप्तिकथनमुख्यत्वेन दोहकसूत्रत्रयं गतम्
अथ प्रभाकरभट्टविज्ञापनानन्तरं श्रीयोगीन्द्रदेवास्त्रिविधात्मानं कथयन्ति
११) पुणु पुणु पणविवि पंच-गुरु भावेँ चित्ति धरेवि
भट्टपहायर णिसुणि तुहुँ अप्पा तिविहु कहेवि (विँ?) ।।११।।
पुनः पुनः प्रणम्य पञ्चगुरून् भावेन चित्ते धृत्वा
भट्टप्रभाकर निश्रृणु त्वम् आत्मानं त्रिविधं कथयामि ।।११।।
पुणु पुणु पणविवि पंचगुरु भावें चित्ति धरेवि पुनः पुनः प्रणम्य पञ्चगुरूनहम् किं
कृत्वा भावेन भक्ति परिणामेन मनसि धृत्वा पश्चात् भट्टपहायर णिसुणि तुहुं अप्पा तिविहु
कहेवि हे प्रभाकरभट्ट ! निश्चयेन श्रृणु त्वं त्रिविधमात्मानं कथयाम्यहमिति बहिरात्मान्तरात्म-
परमात्मभेदेन त्रिविधात्मा भवति अयं त्रिविधात्मा यथा त्वया पृष्टो हे प्रभाकरभट्ट तथा
32 ]
yogIndudevavirachita
[ adhikAr-1 dohA-11
इस कथनकी मुख्यतासे तीन दोहे हुए आगे प्रभाकरभट्टकी विनती सुनकर
श्रीयोगीन्द्रदेव तीन प्रकारकी आत्माका स्वरूप कहते हैं
गाथा११
अन्वयार्थ :[पुन: पुन: ] बारम्बार [पञ्चगुरुन् ] पंचपरमेष्ठियोंको [प्रणम्य ]
नमस्कारकर और [भावेन ] निर्मल भावोंकर [चित्ते ] मनमें [धृत्वा ] धारण करके [‘अहं’ ]
मैं [त्रिविधं ] तीन प्रकारके [आत्मानं ] आत्माको [कथयामि ] कहता हूँ, सो [हे प्रभाकर
भट्ट ] हे प्रभाकरभट्ट, [त्वं ] तू [निशृणु ] निश्चयसे सुन
भावार्थ :बहिरात्मा, अंतरात्मा, परमात्माके भेदकर आत्मा तीन तरहका है, सो हे
प्रभाकरभट्ट’ जैसे तूने मुझसे पूछा है, उसी तरहसे भव्योंमें महाश्रेष्ठ भरतचक्रवर्ती, सगरचक्रवर्ती,
e pramANe traN prakAranA AtmAnA pratipAdak pratham mahAdhikAramAn shrI prabhAkarabhaTTanI
vinantInA kathananI mukhyatAthI traN dohak sUtro samApta thayAn.
have shrI prabhAkarabhaTTanI vinantI sAmbhaLIne shrI yogIndradev traN prakAranA AtmAnun svarUp
kahe chhe
bhAvArthabahirAtmA, antarAtmA, ane paramAtmAnA bhedathI traN prakAranA AtmA
chhe. to he prabhAkar bhaTTa! te jevI rIte A traN prakArano AtmA mane puchhyo tevI rIte
bhedAbhedaratnatrayanI bhAvanA jemane priy chhe evA, paramAtmAnI bhAvanAthI utpanna vItarAg