have pharI te paramAtmAnun kathan kare chhe —
bhAvArtha — je anant gnAnAdi nijasvabhAvane chhoDato nathI ane kAmakrodhAdirUp
parabhAvane nijasvapaNe grahaN karato nathI, traNe jagatanA, traNe kALanA samasta vastusvabhAvane jANe
chhe, mAtra jANe chhe eTalun ja nahi paN dravyArthikanayathI nitya ja athavA nitya sarvakALane ja
niyamathI jANe chhe te shiv chhe ane shAnt chhe.
vaLI A ja jIv mukta-avasthAmAn vyaktirUp shAnt ane shivasangnA pAme chhe ane
sansAr-avasthAmAn shuddha dravyArthikanayathI shaktirUpe shAnt ane shivasangnA pAme chhe. kahyun paN chhe
पुनश्च किंविशिष्टो भवति —
१८) जो णिय – भाउ ण परिहरइ जो पर – भाउ ण लेइ ।
जाणइ सयलु वि णिच्चु पर सो सिउ संतु हवेइ ।।१८।।
यो निजभावं न परिहरति यः परभावं न लाति ।
जानाति सकलमपि नित्यं परं स शिवः शान्तो भवति ।।१८।।
यः कर्ता निजभावमनन्तज्ञानादिस्वभावं न परिहरति यश्च परभावं
कामक्रोधादिरूपमात्मरूपतया न गृह्नाति । पुनरपि कथंभूतः । जानाति सर्वमपि
जगत्त्रयकालत्रयवर्तिवस्तुस्वभावं न केवलं जानाति द्रव्यार्थिकनयेन नित्य एव अथवा नित्यं
सर्वकालमेव जानाति परं नियमेन । स इत्थंभूतः शिवो भवति शान्तश्च भवतीति । किं च
अयमेव जीवः मुक्तावस्थायां व्यक्ति रूपेण शान्तः शिवसंज्ञां लभते संसारावस्थायां तु
adhikAr-1 dohA-18 ]paramAtmaprakAsha [ 43
आगे फि र उसी परमात्माका कथन करते हैं —
गाथा – १८
अन्वयार्थ : — [यः ] जो [निज भावं ] अनंतज्ञानादिरूप अपने भावोंको [न
परिहरति ] कभी नहीं छोड़ता [यः ] और जो [परभावं ] कामक्रोधादिरूप परभावोंको [न
लाति ] कभी ग्रहण नहीं करता है, [सकलमपि ] तीन लोक तीन कालकी सब चीजोंको
[परं ] केवल [नित्यं ] हमेशा [जानाति ] जानता है, [सः ] वही [शिवः ] शिवस्वरूप तथा
[शांतः ] शांतस्वरूप [भवति ] है ।
भावार्थ : — संसार अवस्थामें शुद्ध द्रव्यार्थिकनयकर सभी जीव शक्तिरूपसे परमात्मा