भणितः स एवशुद्धात्मसंवित्तिप्रतिपक्षभूतार्तरौद्रध्यानरहितानामुपादेय इति भावार्थः ।।३९।।
अथ योऽयं शुद्धबुद्धैकस्वभावो जीवो ज्ञानावरणादिकर्महेतुं लब्ध्वा त्रसस्थावररूपं
जगज्जनयति स एव परमात्मा भवति नान्यः कोऽपि जगत्कर्ता ब्रह्मादिरिति प्रतिपादयति —
४०) जो जिउ हेउ लहेवि विहि जगु बहु-विहउ जणेइ ।
लिंगत्तय-परिमंडियउ सो परमप्पु हवेइ ।।४०।।
यो जीवः हेतुं लब्ध्वा विधिं जगत् बहुविधं जनयति ।
लिङ्गत्रयपरिमण्डितः स परमात्मा भवति ।।४०।।
यो जीवः कर्ता हेतुं लब्ध्वा । किम् । विधिसंज्ञं ज्ञानावरणादिकर्म । पश्चाज्जङ्गमस्थावर-
रूपं जगज्जनयति स एव लिङ्गत्रयमण्डितः सन् परमात्मा भण्यते न चान्यः कोऽपि जगत्कर्ता
ये दोनों छूट जाते हैं, तभी उसका ध्यान हो सकता है ।।३९।।
आगे जो शुद्ध ज्ञानस्वभाव जीव ज्ञानावरणादिकर्मोंके कारणसे त्रस स्थावर जन्मरूप
जगत्को उत्पन्न करता है, वही परमात्मा है, दूसरे कोई भी ब्रह्मादिक जगत्कर्ता नहीं है, ऐसा
कहते हैं —
गाथा – ४०
अन्वयार्थ : — [यः ] जो [जीवः ] आत्मा [विधिं हेतुं ] ज्ञानावरणादि कर्मरूप
कारणोंको [लब्ध्वा ] पाकर [बहुविधं जगत् ] अनेक प्रकारके जगतको [जनयति ] पैदा करता
है, अर्थात् कर्मके निमित्तसे त्रस स्थावररूप अनेक जन्म धरता है [लिङ्गत्रयपरिमण्डितः ]
स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, नपुसकलिंग इन तीन चिन्होंकर सहित हुआ [सः ] वही [परमात्मा ]
शुद्धनिश्चयकर परमात्मा [भवति ] है ।
भावार्थ : — अर्थात् अशुद्धपनेको परिणत हुआ जगतमें भटकता है, इसलिये जगतका
pratipakShabhUt evA ArtadhyAn ane raudradhyAnathI rahit dhyAnIne upAdey chhe evo bhAvArtha
chhe. 39.
have shuddha-buddha jeno ek svabhAv chhe evo A jIv, gnAnAvaraNAdi karmanun nimitta
pAmIne tras-sthAvararUp jagatane utpanna kare chhe te ja paramAtmA chhe, bIjo koI jagatkartA brahmAdi
paramAtmA nathI em kahe chhe —
bhAvArtha — pUrve anek prakAre je shuddha AtmA kahevAmAn Avyo chhe, te ja shuddha
adhikAr-1 dohA-40 ]paramAtmaprakAsha [ 71