Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
śrī digaṁbar jain svādhyāyamaṁdir ṭrasṭa, sonagaḍh - 364250
परापरः परेभ्योऽर्हत्परमेष्ठिभ्यः पर उत्कृष्टो मुक्तिगतः शुद्धात्मा भावः पदार्थः स एव
सर्वप्रकारेणोपादेय इति तात्पर्यार्थः ।।२४।।
अथ त्रिभुवनवन्दित इत्यादिलक्षणैर्युक्तो योऽसौ शुद्धात्मा भणितः स लोकाग्रे तिष्ठतीति
कथयति —
२५) एयहिँ जुत्तउ लक्खणहिँ जो परु णिक्कलु देउ ।
सो तहिँ णिवसइ परम-पइ जो तइलोयहँ झेउ ।।२५।।
एतैर्युक्तो लक्षणैः यः परो निष्कलो देवः ।
स तत्र निवसति परमपदे यः त्रैलोक्यस्य ध्येयः ।।२५।।
एतैस्त्रिभुवनवन्दितादिलक्षणैः पूर्वोक्तैर्युक्तो यः । पुनश्च कथंभूतो यः । परः
परमात्मस्वभावः । पुनरपि किंविशिष्टः । निष्कलः पञ्चविधशरीररहितः । पुनरपि किंविशिष्टः ।
ahīṁ mukta jīv jevuṁ potānuṁ śuddha ātmasvarūp che te ja upādey che evo bhāvārtha
che. 25.
adhikār-1 : dohā-25 ]paramātmaprakāś: [ 51
उनमेंसे कल अर्थात् शरीर सहित जो अरहंत भगवान् हैं, वे साकार हैं, और जिनके शरीर नहीं,
ऐसे निष्कल परमात्मा निराकारस्वरूप सिद्धपरमेष्ठी हैं, वे सकल परमात्मासे भी उत्तम हैं, वही
सिद्धरूप शुद्धात्मा ध्यान करने योग्य है ।।२४।।
आगे तीन लोककर वंदना करने योग्य पूर्व कहे हुए लक्षणों सहित जो शुद्धात्मा कहा
गया है, वही लोकके अग्रमें रहता है, यही कहते हैं —
गाथा – २५
अन्वयार्थ : — [एतैः लक्षणैः ] ‘तीन भुवनकर वंदनीक’ इत्यादि जो लक्षण कहे थे,
उन लक्षणोंकर [युक्तः ] सहित [परः ] सबसे उत्कृष्ट [निष्कलः ] औदारिक, वैक्रियिक,
आहारक, तैजस, कार्माण ये पाँच शरीर जिसके नहीं है, अर्थात् निराकार है, [देवः ] तीन
लोककर आराधित जगतका देव है, [यः ] ऐसा जो परमात्मा सिद्ध है, [सः ] वही [तत्र
परमपदे ] उस लोकके शिखर पर [निवसति ] विराजमान है, [यः] जो कि [त्रैलोक्यस्य ]
तीन लोकका [ध्येयः ] ध्येय (ध्यान करने योग्य) है
।
भावार्थ : — यहाँ पर जो सिद्धपरमेष्ठीका व्याख्यान किया है, उसीके समान अपना भी
स्वरूप है, वही उपादेय (ध्यान करने योग्य) है, जो सिद्धालय है, वह देहालय है, अर्थात्