Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
ज्ञानावरणाद्यष्टद्रव्यकर्माणि क्षुधादिदोषकारणभूतानि क्षुधातृषादिरूपाष्टादशदोषा अपि कार्यभूताः,
अपिशब्दात्सत्ताचैतन्यबोधादिशुद्धप्राणरूपेण शुद्धजीवत्वे सत्यपि दशप्राणरूपमशुद्धजीवत्वं च नास्ति
तेन कारणेन संसारिणां निश्चयनयेन शक्ति रूपेण रागादिविभावशून्यं च भवति
मुक्त ात्मनां तु
व्यक्ति रूपेणापि न चात्मानन्तज्ञानादिगुणशून्यत्वमेकान्तेन बौद्धादिमतवदिति तथा चोक्तं
पञ्चास्तिकाये‘‘जेसिं जीवसहावो णत्थि अभावो य सव्वहा तस्स ते होंति भिण्णदेहा सिद्धा
वचिगोयरमदीदा’’ अत्र य एव मिथ्यात्वरागादिभावेन शून्यश्चिदानन्दैकस्वभावेन भरितावस्थः
प्रतिपादितः परमात्मा स एवोपादेय इति तात्पर्यार्थः ।।५५।। एवं त्रिविधात्मप्रतिपादक-
प्रथममहाधिकारमध्ये य एव ज्ञानापेक्षया व्यवहारनयेन लोकालोकव्यापको भणितः स एव
परमात्मा निश्चयनयेनासंख्यातप्रदेशोऽपि स्वदेहमध्ये तिष्ठतीति व्याख्यानमुख्यत्वेन सूत्रषट्कं
गतम्
।।५५।।
ana.nt j~nAnAdi guNathI shUnyapaNu.n ekAnte nathI. pa.nchAstikAy (gAthA-35)mA.n paN kahyu.n
Che ke :
‘जेसिं जीव सहावो णत्थि अभावो य सव्वहा तस्स ते होंति भिण्णदेहा
सिद्धा वचिगोयरमदीदा’artha:jemane jIvasvabhAv (prANadhAraNarUp jIvatva) nathI ane
sarvathA teno abhAv paN nathI, te deharahit vachanagocharAtIt siddho Che. (siddha
bhagava.nto Che.)
ahI.n mithyAtva, rAgAdi bhAvathI shUnya ek (kevaL) chidAna.ndarUp svabhAvathI
paripUrNa je paramAtmA kahevAmA.n Avyo Che te upAdey Che, evo tAtparyArtha Che. 55.
अशुद्धरूप प्राण नहीं हैं, इसलिये संसारी-जीवोंके भी शुद्धनिश्चयनयसे शक्तिरूपसे शुद्धपना
है, लेकिन रागादि विभाव-भावोंकी शून्यता ही है
तथा सिद्ध जीवोंके तो सब तरहसे
प्रगटरूप रागादिसे रहितपना है, इसलिये विभावोंसे रहितपनेकी अपेक्षा शून्यभाव है, इसी
अपेक्षासे आत्माको शून्य भी कहते हैं
ज्ञानादिक शुद्ध भावकी अपेक्षा सदा पूर्ण ही है,
और जिस तरह बौद्धमती सर्वथा शून्य मानते हैं, वैसा अनंतज्ञानादि गुणोंसे कभी नहीं हो
सकता
ऐसा कथन श्रीपंचास्तिकायमें भी किया है‘‘जेसिं जीवसहावो’’ इत्यादि
इसका अभिप्राय यह है, कि जिन सिद्धोंके जीवका स्वभाव निश्चल है, जिस स्वभावका
सर्वथा अभाव नहीं है, वे सिद्धभगवान् देहसे रहित हैं, और वचनके विषयसे रहित हैं,
अर्थात् जिनका स्वभाव वचनोंसे नहीं कह सकते
यहाँ मिथ्यात्व रागादिभावकर शून्य
तथा एक चिदानंदस्वभावसे पूर्ण जो परमात्मा कहा गया है, अर्थात् विभावसे शून्य
स्वभावसे पूर्ण कहा गया है, वही उपादेय है, ऐसा तात्पर्य हुआ
।।५५।।
adhikAr-1 : dohA-55 ]paramAtmaprakAsh: [ 95