Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 2 of 565
PDF/HTML Page 16 of 579

background image
Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
vyAkhyAn arthe adhikAranI shuddhi [paripATI] kahevAmA.n Ave Che. te A pramANe(1) pratham
ja pa.nchaparameShThInA namaskAranI mukhyatAthI ‘‘जे जाया झाणग्गियए’’ ityAdi sAt dohak sUtro Che,
(2) tyArapaChI vij~nApananI mukhyatAthI ‘‘भाविं पणविवि’’ ityAdi traN sUtro Che, (3) tyAr-
paChI bahirAtmA, antarAtmA, paramAtmA e bhedothI traN prakAranA AtmAnA kathananI mukhyatAthI
‘‘-पुणु पुणु पणविवि’’ ityAdi pA.nch sUtro Che, (4) tyArapaChI muktine prApta thayelA vyaktirUp
paramAtmAnA kathananI mukhyatAthI ‘‘तिहुयणवंदिउ’’ ityAdi das sUtro Che, (5) tyArapaChI dehamA.n
rahelA shaktirUp paramAtmAnA kathananI mukhyatAthI ‘‘जेहउ णिम्मलु’’ ityAdi pA.nch antarbhUt
prakShepako sahit chovIs sUtro Che, (6) paChI jIvanA nijadehapramANanA viShayamA.n svamat, paramatanA
vichAranI mukhyatAthI
‘‘किं वि भणंति जिउ सव्वगउ’’ ityAdi Cha sUtro Che, (7) tyArapaChI
व्याख्यानार्थमधिकारशुद्धिः कथ्यते । तद्यथाप्रथमतस्तावत्पञ्चपरमेष्ठिनमस्कारमुख्यत्वेन ‘जे
जाया झाणग्गियए’ इत्यादि सप्त दोहकसूत्राणि भवन्ति, तदनन्तरं विज्ञापनमुख्यतया ‘भाविं
पणविवि’ इत्यादिसूत्रत्रयम्, अत ऊर्ध्वं बहिरन्तःपरमभेदेन त्रिधात्मप्रतिपादनमुख्यत्वेन ‘पुणु पुणु
पणविवि’ इत्यादिसूत्रपञ्चकम्, अथानन्तरं मुक्ति गतव्यक्ति रूपपरमात्मकथनमुख्यत्वेन
‘तिहुयणवंदिउ’ इत्यादि सूत्रदशक म्, अत ऊर्ध्वं देहस्थितशक्ति रूपपरमात्मकथनमुख्यत्वेन ‘जेहउ
णिम्मुलु’ इत्यादि अन्तर्भूतप्रक्षेपपञ्चकसहितचतुर्विंशतिसूत्राणि भवन्ति, अथ जीवस्य
स्वदेहप्रमितिविषये स्वपरमतविचारमुख्यतया
‘किं वि भणंति जिउ सव्वगउ’ इत्यादिसूत्रषट्कं,
2 ]yogIndudevavirachit: [ pAtanikA
चिदानंदचिद्रूप है, उनके लिये मेरा सदाकाल नमस्कार होवे, किस लिये ? परमात्माके स्वरूपके
प्रकाशनेके लिये
कैसे हैं वे भगवान् ? शुद्ध परमात्मस्वरूपके प्रकाशक हैं, अर्थात् निज और
पर सबके स्वरूपको प्रकाशते हैं फि र कैसे हैं ? ‘सिद्धात्मने’ जिनका आत्मा कृतकृत्य है
सारांश यह है कि नमस्कार करने योग्य परमात्मा ही है, इसलिये परमात्माको नमस्कार कर
परमात्मप्रकाशनामा
ग्रंथका व्याख्यान करता हूँ
श्रीयोगीन्द्रदेवकृत परमात्मप्रकाश नामा दोहक छंद ग्रंथमें प्रक्षेपक दोहोंको छोड़कर
व्याख्यानके लिये अधिकारोंकी परिपाटी कहते हैंप्रथम ही पंच परमेष्ठीके नमस्कारकी
मुख्यताकर ‘जे जाया झाणग्गियए’ इत्यादि सात दोहे जानना, विज्ञापना की मुख्यताकर ‘भाविं
पणविवि’
इत्यादि तीन दोहे, बहिरात्मा, अंतरात्मा, परमात्मा, इन भेदोंसे तीन प्रकार आत्माके
कथनकी मुख्यताकर ‘पुणु पुणु पणविवि’ इत्यादि पाँच दोहे, मुक्तिको प्राप्त हुए जो प्रगटस्वरूप
परमात्मा उनके कथनकी मुख्यताकर ‘तिहुयण वंदिउ’ इत्यादि दस दोहे, देहमें तिष्ठे हुए शक्तिरूप
परमात्माके कथनकी मुख्यतासे ‘जेहउ णिम्मलु’ इत्यादि पाँच क्षेपकों सहित चौवीस दोहे, जीवके
निजदेह प्रमाण कथनमें स्वमत-परमतके विचारकी मुख्यताकर ‘कि वि भणंति जिउ सव्वगउ’